वसुनन्दि श्रावकाचार | Vasunandi Shravakachar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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स्व० पुरयश्लोका माता सू्तिदेवी की पविन्न स्घ॒तिसें तत्सुपत्र सेठ शान्तिप्रसादजी द्वारा संस्थापित आप 5... न्थ्‌ जञानपीठ मूतिदेवी जन-ग्रन्थमाला इस ग्रध्थमालामे प्राकृत, संस्कृत, अपंश, हिन्दी, कन्नड, तामिल आदि मराचीन भाषाओंस उपलब्ध आगमिक, दाशनिक, पौराणिक, साहित्यिक और पेतिहासिक आदि विविध-विपयक जैन साहित्यका अनुसन्धानपू्णो सम्पादूव और उसका मूल ओर यथासंभव अनुवाद आदिके साथ अकाशन होगा। जैन भणडारोंकी सूचियाँ, शिलालेख-संग्रह, विशिष्ट बिद्वानोंके अध्ययन-ग्रन्थ ओर लोकहितकारी जैन-लाहित्य अन्थ भी इसी प्रन्थमाला में प्रकाशित होंगे। ग्रन्थमाला सम्पादक-- ग्रिकुत और संस्कृत-विभाग | डॉ० हीरालाल जैन, एम० ए०, डी० लिट्‌० डॉ० आदिनाथ नेमिनाथ उपाध्याय, एम० ए०, डी० लिखू० अब: शक: ४१. मे किये ये: के; से: के; हे; / है के तर्क पक के है; के! थे? दे: हे. पे फैट कि रे बे! है: के; के; के है! हे है! रेट! दे! अकाशक--- अयोध्याप्रसाद गोयलीय, मत्त्री, सारतीय ज्ञानपीठ काशी दुर्गाकुण्ड रोड, बतारस ४ मुद्रक-देवताप्रसादं गहमरी, संसार प्रेस, काशीपूरा, बनारस #विकी /शि/ पे जि: वि; जे / दे 2) /: के हरि: बेर: के है। ये: : ९: कि +ग/थि /बे5 २४९ / है: पे; ३/ वि; / ९४): : के: दि; वि ई २४ दे ठ ये: १/ के / ३5) । वि: १४१३): २: । कि: के पेट ज।: / है 74४ के: है स्थापनाब्द पे ही विक्रप्त सं० २००० फाल्गुण कृष्ण ६ सर्वाधिकार सुरक्षित ४ े बोर नि० २४७० है १८ फरवरी १६४४




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