विधि शास्त्र पर प्रश्नोत्तर | Vidhi Shastr Par Prashnotar

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Vidhi Shastr Par Prashnotar by राधा रमण - Radha Raman

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दिघिगास्त का अब तथा क्ष + श्र हुं। विधि वी वृद्धि कातूनी महारत्ियों हारा हुई है इस प्रालाचना व समायान के कवर खबिगनी (38ए1209) कावबन हैंडि य महारपा जनता में सही थ । येभी समाज व झग थे । प्रयरित्रा म जास वाजिव वाटर ( _छिपपटड 00णए71686 (7 छगकरो एनिद्राप्तिक भायपन पद्धति का वृद्धि के लिय श्रय टिया जाता है । उर्ें बातुती नियर्मों भें रपर राति रिवाज वे तियमा की महानता वे, प्रवज विश्वास ?प । प्रपनो पुस्तव 1.4एव5 णाशात हाए७ए गाते शि्राप्पणा मे टाहोंव यहाँ तक बहा है कि वादून प्रात्यी के कार्यो स बनाया जाता है पराठु एस कार्यों द्वारा बतला या खटित भा विया जा सबता है । 1.३७ गण ०; एथा 0:96 71916 छ7 हवा ढाका फप 2808 चरण 96 बडणड्गमव्ते क टोागप्रइठव्व कफ $एटी बाप एंतिहासिक विधिशास्त्र पद्धति कु गुर एवं दोप--इस पद्धति म रीति रिवाजों मा प्रभुख स्पान या जाता है. सम खाप्त कमा यह है जि इसब प्रठमत भुतत काल का वतमान काल तथ भविष्य काल स भ्रधिव महत्व दिया जाता है। विधि के जिए एतिहास्िक प्रतिध्फ विधिशाप्त्र द॑ लिय विशप महृत्वपूरणा हो सकता है तरतु कबज यही एक प्रतिरुप नहीं है । (स) 1तित विधिणात्त्र (>0ग्रववों ]एए5एाफएप्रेटा2८2)--ततिक विधि शास्‍्प्र जिम कभी क्ष्मी दाातित विधिशास्त भी कहा जाता है विधि क॑ नतिक प्रापार का प्रष्पयन वरता है। यह वादुन का निरीसए उसकी अ्राद्धाइ तया तैतिकता वा इृष्टिकाश ये वरता है। रस धारणा व प्रनुसार बादून बोइ ने तक जावन स्तग्प्रपित तया लागू करता है । डाक्टर साप्तह व मत्नुसार नेतिर विधिणास्त्र विधि वितान वा सामाय एवं दाशनित्र भाग है जद पर काजून का विषान बानून के श्रष्ययन इस हा रशेण स ररता है दि कानून कसा होता चाय से कि कपा है या उम्र या। (101 8$ 11 15 07 093 एधच्ा छघ 9517 00280. ६४० 96) चनगतरा यह नी बहना है हि. पतिक विधिवास्‍्त्र सैशानित्र नियमा व मानसिक त्जों सया इस एल्हाप्िक वृद्धि स बोइ सम्द घ नरों रखता है बॉव उसके भौजुा उहेलप से तिमके लिए मह बना है भोर तरोब या पभ्रौरत वी विधि विद चारा व्यव उद्दू ये का पूति हातो है जेसा दि वैधानिक नियमों का उह्दें य है याय को वायम रखना है वैतिड विभिषास्त्र याय के सिद्धांतों का तथा उनके कानुती रम्यघों से हो गम्बा बिन है । हा,गो प्रादियव(लिएड्ठ० 670थ05) घर टाग तक विविद्यास्त्र का पिता माना जा सता है। उने विय प्राहठिक विचे उचित तक की घापणा है जाइस बाव कर




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