चिड़ियाघर | Chidiyaghar

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Chidiyaghar by हरिशंकर शर्म्मा - Harishankar Sharmma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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लीडर-लीला २१ हो जाय पर लीडरी तार का कुतार न होना चाहिये। अगर रवानगी का तार पा बहुत-से लोग, फूल-माला लेकर, (इस्तक़बाल' के लिये हवाई भ्रड्ु या रेलवे स्टेशन पर नहीं पहुँचते, तो लीडर बुरी तरह बड़बड़ाता और बिदक जाता है। कभी-कभी तो उलठा वापस होते हुए भी देखा गया है। लीडर जन्तु सड़ी-गली ह॒वेलियों में रहना पसन्द नहीं करता। उसे फ़र्स्ट-बलास कोठी के बिना चेन नहीं मिलता और न नींद आती है। वह बातें करने में बड़ा कंजूस होता है, छोटे लोगों को तो पास भी नहीं फटकने देता। हाँ, कुछ बड़े आदमियों से, घड़ी सामने रखकर, थोड़ी देर, गुफ्तगू करने में ज्यादा हरज नहीं समभता | ओ्रोहो ! जिस समय इसे “१४४ नम्बर की लाल भंडी दिखाई जाती है, उस समय तो उसकी वही हालत हो जाती है जो. बालछड़ या छारछबीला सूँघने वाली बिल्ली की होती है। कभी वह भंडी को पकड़ने के लिए दौड़ता है, कभी पीछे खिसक जाता है, कभी उछलता है, कभी कूदता है भौर कभी दूर से गुर्रा कर रह जाता है। जिस प्रकार भेड़िया भेड़ को पुचकारता है, उसी प्रकार लीडर पब्लिक के पेसे पर प्यार करता है। हिसाब-फ़हमी का. प्रशन उसको “इन्सल्ट' श्र जीवन-मरण की समस्या है। बाहरी दुनिया में लोगों को लीडर जेसा पुरजोश दिखाई देता है, वेसा वह अपनी गुफ़ा में नहीं नज़र आता । क्योंकि उसकी घरेलू और बहरेलू दो तरह की ज़िन्दगी होती है। जो लोग इस रहस्य को नहीं जानते वे अक्सर धोखा खा जाते और तकलीफ़ उठातें हैं। लीडर जन्‍्तु के मिलने-जुलने के भी कई तरीके हैं। किसी से वह खिल-खिलाकर 'शेकदुम” करता है, किसी के साथ आधी




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