भारतीय संस्कृति एक समाज शास्त्रीय समीक्षा | Bharatiy Sanskrati Ek Samaj Shastriy Samiksha

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Bharatiy Sanskrati Ek Samaj Shastriy Samiksha by गौरीशंकर भट्ट - Gaurishankar Bhatt

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१९ मे पर सस्तति वी स्वतात सत्ता के द्यातक नहीं हैं वरत समान परयायरण, अनुनूति सामाजीक्रण, सस्याओ, कर्शाजा (एश्ेए्०७) भौर आदर (ऑ८५७३) वे व्यक्ति पर चभाव की उत्पत्ति ह। इसी दध्टिकाण स, सम्कृति वी परिभाषा वरत हुए रथ बैन टिपद (0७४ छल्ात्प:०) ने कहा है कि सस्कृत्ति वस्तुत उसी प्रवार एक इवाई है जिस प्रवार व्यवित । एक सस्‍्कृति एक व्यक्षित सी भाति विचारों और तियाओं वा लगभग एक मगत कक्‍लाप (ैणिए 07 1883 ५ एणाओरशटा वाला ० धाण्ण्डााः कावे 8०:०७) हावी है । प्रत्येक सस्शति मे कुछ विश्विष्ट उदय ((1क्1ल ८1596 एप््कु०४९७) उत्प न हा जात है जिनके सामाजशध्ययुक्त स्थायी एकीकरण से सयत यबलाप ([0णक (छा # माल्या) उत्पन होता है 1इ ही उद्देश्यों के अनुसार प्रत्येक सस्टृत्ति के अनुवाहक' अपनी अनुभूति वा तिरतर सचित एवं समक्ति विया करते हैं ओर इहीं उद्दं इया की शावश्यक्तामी के अनुपात मे प्रत्येव/ तस्वति में बाहर से आएं हुए तत्व निरतर झविवाधिक अनुरूप आवार (0ण०ा87००75 $)170) ग्रहण किया करते हैं। प्रयेकः ससकति के विशिष्ट उद्देश्यों से मिलकर उस सस्कूति के सदस्या मे, एवं प्रधात मनावति (0०007008 431४7) बनती है जा उसे एकीकरण, जिशिष्टता और नरतय प्रटान करती है ) इसी प्रधान मतांवत्ति का, विही कि टी आनवश्ञास्तिया ने भ्र्शा (४४०) गौर कसी ने आ-तरिक अवत्ति (2४1००) कहा है । इसम कोई सठह नही कि प्रप्येक ससकृति मे भ्रपला एक प्रवाह हाता है । यह इबाह प्रनुभवगष्प है। पर, इस भ्रवाट का कस वणन किया जाय ओर ससार वी विभिम सस्कतिया मे पाएं जान वाले प्रवाह मं पायी जाने वाली समानताआ तथा असमानताओ को विस प्रकार वर्गीकृत दिया जाय और उह विस भाषा म ब्यकवत क्या जाए यह एश जंदिल समस्या रही है और आज भी ह। उदाहरण के लिए, यदि यह कहा जाय दि मनमौजी (एण्ज़ाफ़ 8०7.एल७ ) मतावृत्ति बिसी सस्कति के लोगो की प्रधान मनोवत्ति ह तो सवस वहा प्रइन यह उठता दै कि यह मनौवृत्ति है क्या ?े और, क्या इसकी कोई सबमाय परिभाषा हो सकती है | रुथ बेनेडिवट और मारग्रेट मोड जमे मानवगास्त्रियो वी जो आलाचना हुयी है, उसने आधार पर तो अही कहा जा सकता है कि नहीं । वास्तव में, समाजगास्य, सावा शास्त्र और मनो- विधान मे जिन प्रारिभाषिक दाब्ला का प्रयोग हाता है व इतने गुणात्मक हैं कि श्रल्य अल्‍ूग सस्कतिया फे सदम म उनके भलग अलग अथ होते हैं, नियक वारण, उनको संवमा'य परिभाषा नहीं हा पाती है। झोर फिर एक यह प्रत्न भी है कि क्या निरीक्षण और ननुभव के आधार पर किसी सस्कति विभेष का प्रधान मनावत्ति को निर्धारित क्या जा सकता ह ? इसबा उत्तर हाँ मे भी दिया जा सकता है और “ना में भी। हाँ मे इसलिए कि बई प्रध्ययन इस प्रवार किए गए हैं और किए जा रहे हैं और 'ना! इसलिए कि एक आर इस प्रवार जे भ्रष्यपन और निर्धारण मे अध्ययनवत्तों बी मतावति का प्रभाव रहता है और दूसरी ग्रोर दो श्रस्ययनबर्ता एक




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