श्री प्रवचनसार | Shri Pravachan Saar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विषम भात्माको, पुदुगलोंके पिण्डके कढत्वका अभाव श्रात्माको दरीरत्वका अभाव निश्चित करते हद जीवका असाधारण स्वलक्षण अमृत आत्माको, स्निग्धरुक्षवका अभाव होनेते बंध कसे हो सकता है ? ऐसा पूर्व पक्ष उपरोक्त पूव्वपक्षका उत्तर भावव॑ंधका स्वरूप भाववन्धकी युक्ति गौर द्वव्यवन्धका स्वरूप पुदुगलबन्ध, जीववन्ध और उन दोचोंके ” वन्धका स्वरूप द्रव्यवन्धक्ा हेतु भाववन्ध भाववन्ध है सो निम्नयवन्ध है परिणामका द्रव्यवन्धके साधकतम रागसे विशिष्टत्व विशिष्ट परिणामके भेदको तथा श्रविशिष्ट परिणामको, कारण में कार्यका उपचार करके कार्यरूपसे बतलाते हैँ जीवकी स्वद्रव्यमें प्रवृत्ति और परद्रग्यसें मिवृत्तिकी सिद्धिके लिये स्व-परका विभाग जीवको स्वद्रव्यमें प्रवृत्तिका निभित्त भौद परद्रव्यमें प्रवृत्तिका मिमित्त स्व-परके विभागका ज्ञान-अनज्ञान है आत्माका कर्म क्‍या है उसका चिरूपण 4 गाया विषय गाथा 'पुदुगल परिणाम आत्माका कमे क्‍यों नहीं १६७ है ?' इस संदेहको दूर करते हैं श्षश आत्मा किसप्रकार पुदुगल कम्मोंके द्वारा १७१ ग्रहण किया जाता है भौर छोड़ा जाता शउर । है ? इसका निरूपण १४६ पुदूलकर्मोंक्री विचित्रताको कौन करता है ? इसका निरूपण १८७ १७३ , अकेला ही आत्मा बन्ध है श्८८ १७४ | निम्यप और व्यवहारका भविरोध १८९ १७५ | श्रशुद्ध नयसे अशुद्ध भ्ात्माकी प्राप्ति १९० शुद्ध नयसे शुद्ध श्रात्माकी प्राप्ति १९१ हक श्रुवत्वके कारण छुद्धात्मा ही उपलब्ध करने थोग्य है १९२ 1७७ | आद्धात्माकी उपलब्धिसे क्‍या होता है यह १७८ निरूपण करते हैं १६४ १७९ | मोहग्रंथिके टूट्नेसे क्‍या होता है सो १९५ श्णष० १६६ १६७ श्श्ष नहीं लाता है सकतज्नानी क्या ध्याते हैं ? उपरोक्त प्रशइनका उत्तर शुद्धात्माकी उपलब्धि जिसका लक्षण है, ऐसा मोक्षका मार्ग-उसको निम्।ित करते हैं आचाय॑देत्र पूर्वप्रतिज्ञाका निर्वाह करते हुए,--मीक्षमार्ग भूत धुद्धात्म प्रवृत्ति करते हैं - १८१ श्प्रे १९९ कहते हैं एकाग्रसंचेतनलक्षणाध्यान आत्माको श्रशुद्धता २१०७० श्पोव




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