श्री चन्द्रसागर स्मृति ग्रन्थ [खंड २] | Shri Chandra Sagar Smriti Granth [Vol. 2]

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भात्म समत्व और बीतरागल की भावना पते प्रा पर्म को शोदन छाया में बैठ राजा है। फ्स्सीसीसीजीरीजमसस्साररसत+भ पीजी पी १२५४२००५४४४२२५०:::२:सस सर स+ सा न्‍ -ा#अीजीसीयीजीसी जा जय परम ह तो तुम लोगो को हमारे बीच में पड़ने की कोई आवश्यकता नहीं है। सर मे हर आत हुक्म चन्द्र जी समाज मे एक प्रभावशाली श्रीमन्त नेता है। सरकार पर उनका बड़ा भारो प्रभाव है। बत' उनके प्रभाव से धर्म पर आई हुई आपत्तिया सहज दूर हो तकनी है। ग़माज मे रहे कर तुम लोगो को उनमे काम लेता पडता है। सदि तुम उनका विरोध करोगे तो फिर वे तमारा साथ केसे देगे ! इसलिए तुमको उन्हे नाराज नही करना चाहिए। हमारा विरोध हम सहत कर लेंगे। वह हमारा धर्म है। तुम लोगो को हमारी चिस्ता नही करनी चाहिए।'.._ कितने स्थितप्रज्ञ वीतराग विचार है ये। जिसको अपने विरोध में भी कोई विधाद गा बेर नही । न अपने विरोधी के विरोध से कोई हु ! इससे अधिक मिप्कपायता, निवेरता का और शत्र्‌ मित्रता मे समभाव का उदाहरण और व्या हो सकता है। जिसको अयने विरोध मे भी विरोध तही दीखता, जो उस स्थिति में भी अत्यन्त शान्त, धीर और गम्भीर रह सकता है । वास्तव मे सच्ची साधुता के दर्शव वही होते है। हम पृज्य श्री चन्द्र सागर जी को उस बोतराग साधु वृत्ति को देखकर उसी समय श्रद्धा से उतके पावन चरणो में नत हो गये। सारा मरुस्थल धर्म स्थल में परिवर्तित हो गया जिस मस्स्थल में कुये बहुत गहरे है, पानी बहुत दूर-दूर से जूते पहने हुये मजदूरों मे मगवा कर खान-पान करना पडता है, फ़िर जो श्रीमन्त लोग भोगोपभोग में सुखासीन, सयमहीन जीवन बिताते है-ऐसे असुविधाजनक स्थानों में मरुस्थल के ग्राव-्याव और नगर-सगर में विहार कर बड़े-बड़े श्रीमन्तों में और साधारण श्रावको मे भी अपनो प्रमोघ प्रभावी वाणी, आगम तल स्पर्णी ज्ञान एवं निर्मल' चारित्र के प्रभाव “से वास्तविक जैनत्व के भाव जागृत कर उनमे शुद्ध खान-पान की प्रवृत्ति जागृत करदी-यह पूज्य श्री चद्ध सागर जी के ही विशुद्ध तप का प्रभाव था कि उनका जनता पर जादू का सा असर पडता जाता था| जो गा पथ की खोटी भावना से अभिभूत था उनमे आगम मार्ग की ज्योति प्रज्वलित करदी | सारा मरुस्थन आगम मार्गी बन कर धर्म स्थल वत गया । निरन्तर भोगो और व्यसतों में लीन रहने वाले बड़े-वडे डाक्टरों; सरकारी अधिकारियों, न्यायाधीशों, उद्योगपतियों और श्रीमन्तों मे जिनने प्रतिमा रूप सयम और त्याग की प्रवृत्ति पैदा करदी- यह वास्तव में मुत्रि चद्ध सागर जी के द्वारा की गई धर्म की एक महान आश्चर्यकारी क्राति थी। आज भी सादा मरुस्थल्र उन्हें एक महान कठोर तपस्वी सच्चा महाव्रती महा साधु के हुप में श्रद्धा से याद करता है ५ दिगम्बरत्व का जागृत निर्भेय प्रहरी दल की राजधानी देहली में पहली वार आचार्य शान्ति मागर जी महाराज का विशाल संध सहित चातुर्माप्त दिगम्बर जैन समाज ने कराया । लेकिन उत्त समय की अग्र जे सरकार ने देहली के कुछ सरकारी स्थानों मे तग्न विहार पर प्रतितन्य की शर्त पर दिगम्बर साथुओ को देहली मे लाने को अनुमति दो थी। देहनी में आने पर जब संघ को वग्न विहार के प्रतिवन्‍्ध की बात मालूम हुई तो सघ में सबमे १हले श्रौ मुनि चद्धसागरजों हा वें मिल्होंने स्वयं इस दिगम्बरत्व पर डाले गये प्रतिवन्व के आघात को दूर करने के लिए आचार्य से है




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