गीतों का क्षण | Geeton Ka Kshan

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Book Image : गीतों का क्षण - Geeton Ka Kshan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गोता का क्षण ४ ३ * देह से वाहर निकलता हूँ आज तक निगले हुए होरे उगलता हूँ। मैं देह से बाहर निकलता हूँ। टोकरी को फूल देकर वे हवायें माँगता हूं निर्गन्‍्ध हो जिन के लिए नींद में भी जागता हूँ वे जिन्हे मैं दोड़कर भी छू नहीं पाया पर लबादे सी सदा जोढे रहा माया नीम-महुओ मे जिम्हे कुछ स्वाद से परखा जिन पव॑तो को बादलो का पाग घर निरखा चरण दे अब उन शिखर की सीढियो को मैं, आ ढलानो पर कही फिर फिर फिसलता हूं । मैं देह से बाहर निकलता हूँ ॥




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