सिंहसिद्धान्तसिन्धु | Sinhsiddhantsindhu
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
23 MB
कुल पष्ठ :
734
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्र्बल्ध्य-स्सस्पाव्इण्टी यय
राजस्थान पुरातन ग्रन्थमाला के अन्तर्गत ।महसिद्धान्तसिन्बु' का यह द्वितीय सण्ड ग्रत्वाक
१२३ के रूप में प्रकाशित हो रहा है। इससे पूर्वे इस ग्रन्थ का प्रथम खण्ड ग्रस्याक १६५ के रुप मे
सत्र १६७० में तिकल चुका है ।
> सिहसिद्धान्तसिन्धु तत्त्र-मन्त्रशास्त्र-विषयक एक प्रीढ़ निवन्ध ग्रन्थ हैं जिसमे संकटो
तद्विषयक्न ग्रल्थो का सार सकलित किया गया है, और तत्तत्म्वलो पर उनके प्रमाण-वचनों का उल्लेख
भी किया गया है जिससे यह एक श्रनूठा सन्दर्भग्रन्व तैयार हो गया है और सम्बन्धित विपयो के
अध्ययन के लिये केवल इस ग्रन्थ के श्रनुशीलन की ही उपादेबता उससे निविवाद प्रमाणित हो गई है।
भारतीय विद्वानों ने श्रपनी कामनाओ्रों की पति के लिये परम विशिष्ट महासरुत्ता को
कल्पना की है श्रौर उसकी प्रसाद-सिद्धि के लिये विविध विधियो का वर्णन किया है, उन्हीं विधियों
में अन्यतम मत्र-तत्र-साधना न्षी है। मत्र, यत्र, और तनन्त्र तीनो की विधियाँ पर्स्पराश्ित भी
तो कही स्वतन्त्र भी । इन प्रक्रियाओं के भी वहुत से भेद है जिनका विस्तृत निवेचन तत्नम्वन्धी
विशाल वाइमय मे है ।
जैसा कि ऊपर कहा गया है, सब ग्रन्थ रूवके लिये न तो सवंदा सुप्राप्प ही हैं, और न
सामान्य जिज्ञासू के पास इतना समय ही होता है कि वह सव ग्रन्थों में से अपनी किसी इच्छित विधि
का उपयोगी भ्रण निकाल कर उससे स्वल्प समय में ही लाभ उठा सके, श्रत्त ऐसे निवन्ध-ग्रत्थ बहुत
ही उपयोगी इस हृप्टि से रहते हैं कि एक ही स्थान पर अनेक उपयोगी दिपय ऐसे लोगों को
|
सिहसिद्धान्तसिन्चु इस दृष्टि से बहुत ही उपयोगी ग्रन्थ है और इसके प्रस्तुत
द्वितीय खण्ड मे १५ से ३६ तरज्भ या अध्याय हैं। इन तरड्भो मे पुरश्चरण-विधि, माला-विधान
पट्कर्म-पअयोग, गणेश, नवग्रह, नारायण, नसिह, वामन, राम, कृष्ण, शिव, पैर०
किन ० आदि देन्तान्नो
के विविध स्वरूपो के भ्रचंनादि काम्य प्रयोगो के विस्तृत विधान दिये गये हैं ।
«. इस शास्त्र मे अभिरुचि रखने वाले विद्वानों और जिज्ञासुजनो को इस ग्रन्थ के अवलोकन
से अवश्य ही भ्रात्मिक आनन्द की अनुभूति होगी, ऐसा मेरा विश्वास है ।
श्रीलक्ष्मीनारायर गोस्वामी ने इस ग्रन्थ के सम्पादन मे बडा परिश्रम विया है। अपने
सम्पांदकीय मे उन्होने ग्रन्थ का सक्षिस परिचय रिया है जिसके अ्रध्ययन से इस ग्रन्थ के प्रति अंत)
की जिज्ञासा और वढ जाती है | -
पु जे० के० जो
१५ जुलाई, १६७६ 4
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