मेघचर्या | Meghacharya

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Meghacharya  by हीरा मुनि - Heera Muni

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भैघचर्या २१५ , है, आहारादि का प्रमाण । साध्ठु को आहार-पानी की मात्रा का ज्ञान भी अवश्य होना चाहिए । वह प्रकृति से भद्र, विनीत, सरल एवं क्रोध मान माया और लोभ को उपशान्‍्त करने वाला मुनि मेघकुमार पुन सयम-पथ पर आरूढ हो गया । औपपातिक सूत्र में मुत्रि के गुणो का विस्तृत वर्णन किया गया है। उन ग्रुणो को मुनि मेघकुमार ने धारण किया। स्थविर सन्‍्तो से ज्ञानाभ्यास किय। और वह ज्ञान तथा क्रिया मे निष्ठ वन गया । ज्ञानार्जन के लिए सेवकभाव को अग्रीकार करना आवश्यक है । जहा अध्येता और अध्यापक मे सेव्यसेवकभाव होता है वही ज्ञान की निर्मल गगा प्रवाहित होती है । ज्ञानप्राप्ति के पश्चात्‌ मेघ मुनि ने तपश्चर्या प्रारम्भ कर दी । तपस्या के बिना पूर्वोपाजित कर्मों का क्षय नही होता | सवर के द्वारा नूतन कर्मवध रोक देने और तपस्या द्वारा पूर्वक्ृत कर्मों की निर्जरा कर देने पर ही मुक्ति का पथ प्रदस्त होता है। (४५) सूलपाठ-तए ण॑ से मेहे अणगारे अन्नया कयाइ समण भगव महावीर वदइ, नमंसइ, वदित्ता नमसित्ता एवं वयासी-5च्छामि ण॑ भते ! तुन्भेहि अब्भणुन्नाए समाणे मासिय भिक्‍्खुपडिस उवसपज्जिता ण विहरित्तए । अहासुह देवाणुप्यिया ! मा पडिबधं करेह। तए ण से मेहे समणेण भगवया महावीरेण अब्भ- णुन्नाए समाणें मासिय भिक्‍्खूपडिम उवसपजित्ता ण॒ विहर॒इ । मासिय भिक्‍खुपडिम अहासुत्त अहाकप्पं अहामग्ग सम्म काएण फासित्ता, पातित्ता, सोहेत्ता, तीरेत्ता, किट्ठ त्ता पुणरवि समण भगव महावीर वदइई, नमंसइ, वदित्ता नम- सित्ता एवं वयासी-




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