आत्मा निर्वासन तथा अन्य कविताएं | Aatma Nirvasan Tatha Anya Kavityan

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Aatma Nirvasan Tatha Anya Kavityan by राजीव सक्सेना -Rajeev Saksena

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कलाएँ अपनी कुजी से उनके द्वार खोलते हुए थकती हैं, द्वार पर द्वार, द्वार पर द्वार, द्वार पर द्वार, अनन्त द्वारों पर द्वार; वे जो दुनियाएँ अवखोजी रह गयीं कम रहस्यपूर्ण नही थीं, उनसे जी खोजी गयीं; और व्यक्तिगत दुनियाओं का विसर्जेन--- फिर उन्हें छौटाकर लाने का द्वार बन्द कर देती है, क्षतिपूर्ति अच्म्भव है । गूंजते रह जाते हैं संवेदनशील शब्द, जिनसे फिर आने वाले लोग अपनी-अपनी दुनियाओं का नया सृजन करते हैं । सृजन करते हैं भेरे-तुम्हारे ओर हमारे व्यक्तिगत जगत जो शब्द, उनमें हैं कितना सामझञस्य, कितना विरोध है, कितनी लय और कितनी अलय है, इस' पर निर्भर हुआ करता है भये विश्व-बोध-काव्य का सौन्दर्य । हम सब शब्द हैं, संगत-असंगत, सार्थक-निरथेंक, सब अपनी गरिमा में मस्तक उठाकर उद्यत हैं अपनी जगह पाने को ओर इस काव्य को कोई सही रचता : दब्द स्वयं संघर्य या सन्धि कर अपनी-अपनी जगह वना लेते है जुटकर और हर बार नयी-नयी छगती है आत्मांशन्सी प्रिय एक महाकाव्य-सी दुनिया 1 (१६६३) सर




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