नारद पुराण [खण्ड 1] | Narad Purana [Khand 1]
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
490
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(४५)
बाहातियों से भी लाभकारी शिक्षाये प्राप्त हो सकती हैं, उप्ती प्रकार
पौराणिक कथाओं मे मनुष्यो को अनेक सदुकर्मों की श्रे रणा मिलती है ।
पुराणकारो ने भी यह नही कहा है कि मनुष्य भक्ति करने के साथ दुष्ट
कर्म भी करता रहे, फिर भी उपका कल्याण ही होगा । उन्होने प्रायः
यहा उपदेश दिया है कि भागवत की भक्ति करने से दुप्ट प्रवृत्तियाँ
स्वयमेव छूट जायेंगी और भनुष्य में साधुता के गुण उत्पस्त हो जायेंगे।
“नारद पुराण” के आरम्भ में ही कह दिया गया है कि भगवान की
प्रसन्बगा के लिए वेद शास्त्रों द्वरा बतलाये सदु-अनुप्ठानों वो करना
आवश्यक हे । मनुष्य निष्काम हो या सकाम उस्ते विधिपूर्वक कर्म
अवश्य करने चाहिये । सदाचा।र परायण ब्राह्मण अपने ब्रह्म तेज के साथ
चूद्धि को प्राप्त होता है। यदि वह भगवान के चरणों प्रे भक्ति रखता
है तो उस पर विष्णु भगवान बहुत प्रशसग्न होते हैं ।” इससे आगे चल
कर भक्त की जो महिसा और प्रणाली बतलाई है उरासे यह बात और
भी स्पष्ट हो जाती है--
“हरिभक्ति:ः पराहृणा कामधेनूपमा स्प्रृता ।
तस्या सत्या पिवन्तज्ञा: ससार गरल हयहो ॥
“भगवान की भकित मनुष्यों के लिये कामधेनु के प्रमात कल्याण-
कारी मान्री गई है । पर कितने आश्चयं की बात है कि अज्ञानी जन
उसे त्याग कर सासारिक मोहरूपी विष को ग्रहण करते हैं ।” मनुष्य को
सतुकर्मों का अनुष्ठान रादेव श्रद्धा और भवित की भावना से ही करना
चाहिये जैसे सूर्य का प्रशाश समस्त जीवों को करत करने मे कारण
रूप होता है, उप्ती प्रकार समस्त तिद्धियों का आधार भवित ही होती
है। जैसे जन सम्पूर्ण लोकों का जीवन कहा गया है चैसे समस्त महान
साभ भवित के द्वास ही प्राप्त होत हैं। जैसे सब जीव-जन्तु पृथ्वी वा
आश्रय लेकर जीवन धारण करते हैं, उसी प्रवार मक्ति वा सहारा
लेकर मव कायों का साधन वरना चाहिये । अद्धालु पुरुव वो घ्म वा
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