वैदिक चमत्कार चिंतामणि | Vaidyaka Camatkarchintamani Of Lolimbaraja
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
150
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)// » ग्रथमों विल्लासः ञ्ड
प्राणियों के स्वास्थ रक्षा द्वेतु-श्री दिवाकर ( पूज्य पिता ) की कृपा से: में इस
! छघुकाय “चमत्कार चिन्तामणि? नामक अन्य की रचना कर रही हूँ। 5
“ ८ विज्ञेप--/द्वाकर प्रसादेन” शास्त्रों में लिखा है क्तिआसेश्यता का इच्छुक सूर्य
, 'की। उपासना करे व इस जाशय से यहाँ पर दिवाकर शब्द से सूर्य का अहण
किया जा सकता है किन्तु ग्रन्थकर्ता के पिता का नाम 'दिवाकर! था-अतभ्यह
भी सम्भव है कि मडलाचरण के प्रसह्ग में लेखक ने अपने, पित्चरणों का स्मरण
किया हो ॥ ६-७ 0: +- की है
चिकित्साविधि--- * ह
परीक्षेत रोगरस्यं लिडानि तावेत्ततोषनन्तर भेषजं च प्रदयात् ।
| इतिव्याधिविद् यश्चिकित्सां प्रकुर्याद् भवेत्तस्य सिद्धिश्व निःसंशयेन ॥८॥
इयासया---यो व्याधिविद् वैथ तावत् पूर्व रोगस्य लिज्जानि लिज्ञयते शायते5नेनेति लिझृ
तानि ( निदान पूर्व॑रूपाणि खूपाण्युपशयस्तथा। सम्प्राप्तिश्वेति विज्ञान रोगाणा पद्चधा म-
तम्॥ तथापि एते पत्न व्यस्ता समस्ताश्व व्याधिवोधका भवन्तीति परीक्षेत्र । यथाह वाग्मट -
रोगमादौ परीक्षेत तदनन्तरमौपधम् । तत कर्म भिपक् पश्माज़्शानपूर्व समाचरेत् ॥
« ,ततं+ परीक्षणानन्तरं भेपज च प्रद्याद ओपथोपचार कुर्यात् 1 एतद्विधिना व्यवह्ारकतु-
स्तस्य वेचस्य सिद्धि---रोगस।फल्य नि सशञ्येव भवेत् | मुजक्ृप्रयातम् | _,
। हिन्दी-सर्वप्रथम निदान, पूर्वरूप, रूप, ,उपशय और सम्प्राप्ति इन पांच
अकार के रोग-विज्ञान के साधनों की सहायता से रोग का निश्चय करे; इसके
पश्चाव् औपध का प्रयोग करे । इस प्रकार चिकिस्सा करने वाले वेद्य को नि सन्देदद
सफलता मिलती है ॥ ८ ॥ 5 +« दा 1
अथ सब्जैबलक्षणान्याहज- | हिणर कक 7 न [पर
सकलदशास्रपुराणविद॒प्यंदो गंदनिदानचिरकिंत्सितयीः पढे ।
उद्थिजन्मकरः सुरकुंताकरः सकरुणो5करुणोंदमिमंतो मिपक् ॥९॥
व्यायया--सकलानि शास्त्राणि पुराणानि च वेत्तीति सकलशास्रपुराणवित् यथाएप्
झुशुत -- ६ महा 2
एक शासते्क्रमधीयानों न विद्याच्छास्ननिश्चयम ।
तस्माद् वहुश्न॒त झ्ासक्ष विजानीयाशच्िकित्सक' ॥ सु सू ४॥
तथा गदनिदानचिकित्सितयो पद्ु गदाना रोगाणा निदान गदनिदान तस्मिन्
चिकित्सायां च पड अर्थात्-उमयश्ञ न्यथोवाच भगवान् धन्वन्तरि- झुशुताय-- -
। यस्स्तु केवलशास्य कर्मस्वपरिनिष्ठित । स'मुश्नत्यातुर प्राप्य प्राप्य भीरुेरिवादवम् ॥
* यंस्तु कर्मसु निष्णातों धाष्टर्याच्छास्रवहिष्कृत । स सत्सु पूजा नामोति वध चाईति'रानतः ॥
डर
1 हज
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