सामवेद का सुबोध अनुवाद | Samved Ka Subodh Anuvad

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Book Image : सामवेद का सुबोध अनुवाद   - Samved Ka Subodh Anuvad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(४) है। चारों बेदोंमें सामवेद भगवान्‌की विभूति है । पच्च, गद्य और गायनमें सन पर “ गायन ” का विशेष प्रभाव पडता है इसका अनुभव सब्रफों होगा। यही सामगानका विभूतिसत्व है। भाषाके तीन प्रक्तारमें गायनक्ा प्रकार मत पर अधिक प्रभाव डालता है। साधारण मनुष्यके ऋन पर गायनके आनन्दका प्रभाव ज्यादा होता है। रोगीफे मर पर भी गायनका प्रभाव, पडता है और वह शीघ्र स्वस्थ होता हैं। गायनका परिणाम खेती, बाग और पौधोंपर भी होता है। खेतमें यदि गायन किया जाए तों अनाज अधिक उपजता है, रोगि- योंके अत्पतालमें यदि गानेके रिकॉर्ड्स लगाये जाएं तो उनके फारण रोगी जल्दी ही स्वस्थ बन जाता है। दुधाए गध्यको दुहते समय यदि उसे गाना सुनाया जाए तो वह ज्यादा वृष दैती है। इसप्रकार गायनक्का प्रभाव पडता है। « इस सामगानकी पद्धतिमें और आधुनिफ पद्धति घोढासा अन्तर है, उसका भी विचार यहां अत्यच्त आवश्यक है, साम- गानमें स्वरक्ों ऊंचे आलापसे शुद करके उसे धीरे घोरे नीचे आलाप पर लाया जाता है, उसके फारण मनको शज्ञान्ति मिलतो है और भडका हुआ सन सामगानफो सुनफर शान्त हो जाता है| इसप्रकार सामगानसे शान्ति मिलू सकती है । आधुनिक पद्धतिके गानेमें ऊंचे और नीचे तानोंके मिश्रण होनेके कारण उस गानेसे मन ज्ञान्त होनेके बजाय और अधिक विफारवश होता है। दोनों प्रकारके मानेफी पद्धतियाँमें पह भेद है। इसलिए मनको ज्ञान्त करनेफे लिए सामगानका उपयोग लाशभप्रद है । यही सामवेदका गीतोष्त विभूतिमत्व है। उच्छृंखल सतको जञान्त फरनेका फास सामगान फर सकता है। महाभारतके अनुशासनपर्यमें भी कहा है--- सामवेदश्य बेदानां यजु्षां शतरुद्रियम्‌ । - (मे. भा. १४३७ ) चारों बेदोम “ सामवेद ” और यजुर्वेदर्मे “ शतरुद्विय ” विजेष सहत्वके ग्रंथ हैं । गीतामें कहा है-- प्रणवः सर्वचेदेषु ॥ ( गी ७८ ) तथा महाभारतमें भी-- आकारः सर्ववेदानाम्‌ ॥ ( भहा अव्वम्ेेध, ४४६ ) ओंकारकी श्रेष्ठता बताई है। इस ऑकारफी प्रशंसासे सामवेददे भहरपमें न्‍्यूनता आजाए, ऐसी बात नहीं । क्योंकि ४ ऑकार ” थ “ उद्भीथ ” दोनों समानार्फक हुँ और संदृगीय सामत्रदका सार है । - सामवेद्का सुबोध अनुचाध्‌ छान्दोग्य-उपनिषद्में फहा है-- साज्नः उद्नीथो रसः ॥ (छां, उ. ११४ ) ४ सामका रस उद््‌गीय है ” इसप्रकार सामवेदका महत्व घणित है। यह सामवेद ही भगवान्‌ूफी विभूत्ति क्यों है ? इसके अन्दर कौनसी विशेषता है, इसका अब विचार करते है- यचहिभूतिमत्सत्वं श्रीमदूर्जितमेच था । तत्तदेवावगच्छे त्वे मम तेजोडशसस्मचवम्‌ ॥ . (गी. १०४१) विभूतिका यह लक्षण गीतामें फहा है। जहां जहां विशेष विभृतिका तत्व होगा, श्रीमत्व दीखेगा, ऊजित-भावना अनु- भवमें आएगी, धहां वहां भगवानुकी विभूति है, यह समझना चाहिए । इस लक्षणके आधार पर सामबेद वेदोंमें निःसन्देह एक विभूति है। सामवेद गायनरूप होनेके कारण “ दाब्द- न्नह्म ” की गायनरूपी विभूति है। तान अथवा भालापसे साम- बेदकी शोभा दीखती है, यही इसकी शोभा अयवा श्रीमर है। उसीप्रकार इस सामवेदका समूजितत्व विकार - विडलेषण - अभ्यास - विरास - स्तोभ हन गानोंकी योजनासे श्रोताओंको अनुभवर्में आयेगा । साधारण गद्यकी अपेक्षा छत्द, छन्दकी अपेक्षा फाण्य, काव्यकी अपेक्षा गायन और गानसें तानोंका आालाप विशेष प्रभावशाली होता है। इसीकारण सामवेदकी विशेष महत्ता है। यह ही छान्‍्दोग्य-उपनिषद्‌र्से कहा है-- चाचः ऋगमस३, ऋचः$ सामरल।। साज्न उद्बीथो रख; ॥ ( छा. उ. ११२ ) # बाणीका रस ऋचा है, ऋचाका रस साम है, और सामक्का रस उद्गीय है । और भी कहा है-- सामचेद एच पुष्पम्‌ ३ ( छा. उ. ३३१ ) / जैसे दुक्षके पत्ते ओर फूलॉमें फूल विशेष शोभावायक होते है, उसीप्रकार गायनरूप होनेके कारण सामवेद बेद- बुक्षका फूल है । सामवेदका अर्थ सामवेदका अर्थ और उसका स्वरूप दया है? इस पर अब विचार फरते हूँ । सामबेदका अर्थ केवल मंत्रसंग्रह ही है अथवा गान भी है, यह भव देखते है । छान्‍्दोग्य उपनिषव्‌का कथन है--- या ऋष्ू तत्साम | ( छा. उ. १३४ ) # ऋषाओंका संग्रह ही साम है। ” जौर भी -- - आचि अध्यूद साम | ( छा. उ, १६१ ) : # साम ऋचा पर आधारित होते हैं । ” साप ऋणाको छोड्कर ओर किसीके माथयसे नहीं रहता | ऋग्नेद और




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