मरणकण्डिका | Marankandika

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(६) (७) (९) (१०) (११) (१२) [ १६ | है, जेसे वश मे किया गया दास अ्न्यत्र नही जाता वैसे वश हुआ मन श्रशुभ में नहों जाता इत्यादि। इसमें ११ कारिकाये हैं । अनियत विहार--साधु वायुवत्‌ निःसग होकर सवंत्र विहार करे कही पर भी प्रतिबद्ध न रहे इससे रत्नत्रय मे स्थिरता आदि गुणो को प्राप्ति होती है । इसमे १० इलोक है। परिणाम-मेरे मे कौन से समाधिम रण के ग्रहरा की क्षमता है, अनन्त ससार मे परिभ्रमण करते हुए मैंने आज तक समाधि पूर्वक मरणा तही किया अत दुख का भाजन बन रहा ह। अब अवश्य ही समाधि युक्त मरण करू गा। इत्यादि रूप समाधि के लिए हृढ परिणाम करता इत्यादि । इसमे ८ श्लोक हैं। उपधित्याग--परि ग्रह का त्याग श्रर्थात्‌ जो परिग्रह त्याग महाव्त पहले से स्वीकार किया है उसमे विशेष रूप से हृढ़ता लाना, साधु योग्य पुस्तक आदि मे भी ममत्व नही करना साधु योग्य वस्तु होते हुए भी विवेक युक्त ही ग्रहण करना इत्यादि । इसमे ६ श्लोक है । श्रिति-सम्यक्त्वादि गुणो मे प्रतिदिन विशुद्धि बढाना । इसमे ७ कारिकायें हैं। भावता--सध के समक्ष अपनी समाधि ग्रहण की भावना व्यक्त करना, कांदर्पी आदि सवलेश वाली अशुभ ५ भावना का सर्वथा त्याग करना श्र तपो भावना, धैर्य भावत्ता भ्रादि पविश्र शुद्ध भावना का आश्रय लेना इसमे एकत्व भावना में दृढ ऐसे नामदत्त नाम के महामुनि का कथानक है । इसमे २५ कारिकायें हैं । सललेखना श्रादि श्रधिकार सललेखना--सनन्‍्यास के सम्मुख व्यक्ति को बारह तपो में विशेष रीत्या सलग्न होना चाहिए। छह भ्रन्तरम और छह बाह्य तप हैं इन तपो की विधि एवं इनसे होने वाला तत्कालीन लाभ आदि का सुन्दर विवेचन इस अ्रधिकार मे है भक्त अ्रत्याख्यान का उत््वष्द काल बारह वर्ष प्रमाण है उसको इस प्रकार व्यतीत करें--विविध-अतापन योग कायवलेश ब्रादि तो द्वारा चार वर्ष व्यतीत करे, चार वर्ष समस्त रसो का त्याग करके पूर्ण करें, श्रात्ाम्ल शोर रप त्याग द्वारा दो वर्ष तथा एक वर्ष आचाम्ल तप द्वारा श्रीर अन्तिम छह मास उल्लाद कायक्लेश द्वारा व्यतीत करे । कषाय सललेखना-कपायो का कृद्योकरण या त्याग भो साय साथ सर्वया करना आवश्यक है तभी वह सल्लेखना कहलाती है । इसमे ६८ कारियायें ह । दिशा--समाधिमररण के इच्छुक व्यक्ति यदि आ्राचार्य हैं तो वे प्रपना आचाय पद योग्य धिः्य को शुभ नक्षत्र वार आदि मे देते हैं एवं उनको सघ संचालन का दिया बोए देसे हैं? एस ५ कारिका हैं ।




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