श्रमण - संस्कृति की रूपरेखा | Shraman Sanskriti Ki Rooparekha

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Shraman Sanskriti Ki Rooparekha by पुरुषोत्तम चन्द्र जैन - Purushottam Chandra jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शा । याट रहें कि क्पम स्वामां जैंन घम कप्रश्म तीयका हैं। इसके अतिरित प्राप सभी शिखालर्सा में “ नमाश्ररित्वाण ? आता है। जिसका श्रथ हणए है हि एक या दा नहीं किन्तु च्टूत से तंथररों का शद्धाक्ष। न दो गई है। यदि भगवान्‌ महावार स्व्रामा या पा नाथ प्रभु से जैन यम का प्रारम्भ हुआ इ ता ता उन दाना के या एक पे माम लिखकर दी भ्रद्धाचलिया दाहातां। ऐसा न कर क्ग्रादि चाथकर क्रपम लामी का नाम शिलालेसा में थाता है। जिन का भरद्धाजल दी गई दै श्रोर उनक अतिरिक्त बाकी ऊ मत ते थचरा। को भद्धाश्ननिया दा गइ हैं (इस स यह स्पण् है कि श्री ऋषभ स्वामी से ले कर श्रय सर तु यकर समयकझ्ुमपर पर श्रवतार ले चुर हैं. भ्रार उन मसत्रर लिये । दाकडली दल पे शिवाचखा में श्रद्धाललिया श्रर्रित की गे हूँ । निस्‍न्‍न्‍्देद इमारे पास ऐसे श्रकादय और वजनदार प्रमाण नर्त हैं ब्ित रु श्राघार पर चाबस तोयरूरा का हा ऐतिदवामिक व्यक्त सिद्ध क६ दिया बाए सिन्‍्तु जेस २ उत्तरात्तर खात्र होती आयेगी श्रौर इतिदस पर थरकारा बढ़ता आया ये रेश्आाव की कान्पनिक बातें सत्यदय मे माना बाने लगेंगी।पदिले ता लाग जैन घम का तौद्ध धम से पृथक्‌ श्रग्तिल द्वा नहां मानते थे किस अत मानते हैं। पदिले तो लाग भगवान महात्र र स्वामों ओर पराशानाथ प्रभु को भौ एतिद्वातिक ब्यक्ति नहीं मनने थे, मिल श्रय सभा विद्वान मानते हैं | भविष्य मे जैसे ही प्रमाण मिलते जाए गे पंस ही अन्य तीथकरों को भी ऐतिद्वासिक प्यक्ति मान लिया जायगा । वैदिक धम के प्राचीनतम ग्र थ ऋगेद को कुछ विद्याए्‌ इसा पूव २२०० वष मानते थे और ऊुछ २४०० दप मानते थ किजु मौहन जोट्ड़ों नगर की खुदाइ के बाद था खोज हुई है उठ ये आधार पर“




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