मेरी जीवन यात्रा | Meri Jivan Yatra

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Meri Jivan Yatra  by राहुल सांकृत्यायन - Rahul Sankrityayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ईरान से श्र मत करो। उनके फ्वक्ड स्वभाव से भी मैं परिचित हा चुका था । तेहरान विश्वविद्याल्य वे समीप ही तिमहल पर दा काठरियाँ उहांने छे रखी थी। बहुत मामूठी सामान था। एक नोकरानों ( रुकया ) थी जा साना बंता दिया करती थी। महम्ृद नौ बजे दपतर चले जात थे उन्हान एक ईरानी सौदागर व' साथ कुछ बारवार णुरू क्या था। मैंयात्तावीजेके लिए बारिटा बरन ब्रिटिय तथा सावियत-दूतावास का चवकर लगाता या वही से युछ पुस्तकें पदा करने पढता। महमूद के आन पर कभी हम दीमियाद माहव के यहाँ जाते और कभी दाइडल इस्लाम व यहाँ। उनकी सौतरी माँ और पिता के घर भो जाते थे । उस समय युद्ध वे कारण तेहरान मे भारतोय सना भी काफी सख्या मे मौजूद थी इसल्ए क्मी-क्मी भारतीया से भी मिलन चरे जाते। तहरान मे अमरिबन, अप्रेजी, फ्रेंच और रूसी ही नहीं बुछ हिन्दा पिल्‍म भी दिसाय जाते थे । हिंदी फिल्‍मों में “पिस्तौर वाली जसे बहुत नीचे दर्जे क फिल्‍म हो अधिक थे । एव दा सप्ताह ता मुझे यह बहुत बुरा मालूम होता था --तिं मैं कया अपन दस्त पर अपना भार डार रहा हूँ, विन्तु पीछे उनव स्वभाव स जधिव परिचित हान व वाद वह संकोच जाता रहा) दाइउल इस्लाम की जयप्ठ बाया जाहिरा न एव टिन उम्मानिया विश्वविद्यालय वा एम० एु० बे अपन निवाघ पा सुनाया। मुटठ़ा या पुरान पडिता जसी खाज थी-- जगा एपेश्वरवाटी था। बह ईरान व अखामनी (दारा) खानदान से पटा हुआ था। उसने परसपाष्टिस के वारागरा था बुझाउर भारतवष म इमारतें बनवाई थीं। अपार का दाटा चाडगुप्त ईशन व नगर मूर से भाग कर आया था, जा हि परमेषारिसि ( तस्वजस्गीद ) वा हा दूसगा नाम था। अगाक बौद्ध नहीं था। अजन्ता वी गुफायें बोद विहार नही थे, वल्कि पुर- बणी और दुसर दवियनी राजाओ या चित्रणालायें हैं जिनम उतरी वास्त विर जीवन और इतिहास लिया हुआ है। उनता बुद्ध और बौद्ध मिलुआ स भाई सम्बंध नही बुद्ध न ता चित्र और मूर्तियाँ दनानो मना वर दी थीं, फि्रियोद भिश्ु इहें कस बना सतत थे २ यट श्गारी मूतियाँ और चित्र बोद लिुआ गे यनाय गभी नहीं हा सवत । मैन बड़े घैय से जाहिरा सानस्‌ के निवाय या सुना । भुसे आच्चय हाता था उममानिया विश्वविद्याए प मे




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