निरुक्तम | Niruktam

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Niruktam  by श्री ब्रह्मलीन मुनि - Shri Brahmalin Muni

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्रीगणिशाय नम। ॥ तय क्रिमप्पखितमेदसपेतमेर, ध्यात्या करोमि विश्रर्तिं विशेदा निरुक्ते। न ५ 1 शैध ल्‍ काण्डेउ्त्र देवत इमां सुतरां निरीक्षय शानाय, सा भवतु मन्दनन्ल है| तु अथ निरक्तोत्तरपर्टकप्रारम्म ते तर सप्तमाध्यायस्य प्रथम, खण्ड ॥॥ तृतीय देवत काण्डम्‌॥। ) +” ।!*1 उपोद्धोर्त । अथातो देवतम्‌ | अं ू ऐकपदिक के अनन्तर, अत ० नेघण्टुक तथा नेगम नामक , काप्डडय के अनन्तर देवतम्‌ ८ देवत नामक क्ुतीय काण्ड का आरम्भ होता है। अर्थात्‌ मूलग्रन्थ निषण्टू है । उसके तीन काण्द हैं। नेधण्टुक, नेगम भोर दैवत ।, नैगम को ऐकप्दिक भी कहते हैं। उसके भाष्य का नाम निदक्त है। दो काण्ड का भाष्य समाप्त हुआ। मव तृतोयकण्ड के भाष्य का प्रारम्भ होता हैं। देवत का छक्षण-- तथानि नामीनि प्राथान्यरतुतीनां देवतानां तदेबतर्मिस्पासशषेते | !. ग्रैधान्यस्तुत्तीताघु 5 प्रेधानता से संतुति वाले, देवतानाम्‌ 5 अग्न से हेकर देवपत्नी पर्य-व देवताओं के, यानि नारमीति हू जो नाम हैं, ४; तत्‌ « बह, देवतम्‌ ४ दैवत कीष्ड हैं, इंति ८ यह आचार्य लोग, भाचक्षते कहते हैं। अर्थात जिन वामो से प्रधानंखूप से देवताओं की निहुपण है उनका समुह दैवत कहछाता है। इस्त प्रकरण में यह निछद्ा सन्ा समझनी चाहिये। हैषां देवतोपेपर्सीक्षा | सा 5 जो प्रथमाध्याय के अन्त मे कहां था कि, तद उपरिष्टाद व्याख्यास्याम 5 उसको आगे व्याख्यान करेंगे, एपा 5 वहों यह, देवदा उपपरीक्षा 5 देवता पदार्थ की विचार पुथक परीक्षा का प्रारम्भ होता है। अर्थात इस वाण्ड मे देवताओं का वर्णन होगो। प्रकरण प्रतिपाथ मल्त्रदेवतालक्षण्-- १ । हत्काम क्षियिया देषतायामार्थपत्यमिच्छन स्जुतिं प्युददे, तईबतः से मिन्द्रो मवति। यहा ऋषि न ३ (सर्प की कामना बाठा ऋषि, यस्याम्‌ देवताथाम्‌ 5 जिस देवता म, सार्यधत्मयु अपने सवोमित्व को, इच्छेव्‌ ० इच्छा करता हुआ, स्तुतिम्‌ प्रवईक्ते > रंतुंति का प्रयोग रा




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