चतुर्भाणी | Chaturbhani
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
430
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)साकंथत
छूगभग चारह बर्ष पूर्व नई दिल्ली के सम्रहालय में बैठे हुए मुझे श्री पुफ० डढछ०
दाप्रप्त द्वारा रिफ्रित चार सस्कृत नप्टफ! ( फोर सदकृत प्छेज़् ) शीपक लेख पढ़नेका अथ-
खर मिला | यह लेख जनेल भाफ दी रायल छुशियाटिक सोसाइटी रूण्डन के १६२४ के
अतिरिफ शत्ताब्दी जक में ( ए० १२३-१३६ ) प्रकाशित हुआ था। इसका जाधार
श्रा रामकृष्ण कवि द्वारा सम्पादित चतुर्भागी सज्ञक चार प्राचीच भाणोका सम्रह था जो
१६२२ में प्रकाशित हुआ था। इस सपग्रद्मे शूद्वक्क्ृत पद्मप्राखतक, इश्वरदत्तकृत घूते
पिटसवाद, बररचिकृत उभयामिसारिका, जोर श्यामिलकक्ृत पादताडितक नामक चार
भाण थे। पियूरके थी नारायण नम्बूदरीपादकों एक मात्र हस्तलिखित प्रतिके आाधारपर
वह ससकरण तैयार फिय्रा गया था | उस छेखमें श्री दामल ने छिखा था--
“वद्यपि इन भाणों का विषय सामान्यतः: नेतिक दृष्टि से उत्कृष्ट नहीं है ओर कहीं
वही भशणेछ सी है, फिर भी मेरे विचार से यह माना जा सकेगा कि इनमें वास्तविक
सराहिप्यिक गुग है| उनमें सहज परिदास है और ठेड भारतीय ठग का हस्का ध्यग्य भी है
जिगकी तुलना पेन जानसन या मोलिए से करने में भी ढर नही । उत्तकी भाषा तो सस्कृत
मापा का निचोड़ा हुआ अमृत दै। *इममें बढिया स््वामाविक और सरऊ बोल चाकू की
संस्टत का नमूना है जिसमे मासूलो बाते और अश्लीरू गप्पाष्क का च्यग्यपूर्ण
यर्णन है। #
भुमे बढ़िया भाषा के अति सदा हो गहरा आकपण रहा है, अत टामस् के इस
उए्जेप ने मुझे इस प्रस्थ के लिये व्याकुछ बवा दिया। कुछ समय बाद अपने मित्र
भी शिवरामगूति ( इण्डियन स्यूज्ञियस फ्लकत्ते के वत्कालीन अध्यक्ष ) से उस हुष्प्राष्य
पुस्तक की एक प्रति मुझे भाप्त हो गई। तभो कार्यवश सुमे बम्बई जाना पा भौर वहां
अपने मित्र थ्री मोतोचन्द्रजी से मैंने इस घटना का उदलेस क्रिया । थे इससे इतने प्रभावित
झुए कि जप दूसरी यार में यम्पई गया तो उन्होने चतुर्भागे का अपना किया हुआ हिन्दी
भनुवद मेरे सामने रपते हुए सुमे क्ाश्चयं में एल दिया। उस समय सर मेने रपये चद्द
प्रथ पा न था, पर क्षय मेपती घन्द्र जा के अनुरोध से यह श्रावश्यक हो गया कि उस अनु
बाद को झूछ ग्रन्थ ले मिझछा बर ठीक कर छिया ज्ञाय । उसी यात्रा में पहछी थार यद्द कापषे
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