हिन्दी विश्व कोष भाग 19 | Hindi Vishv kosh Bhag 19
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
33 MB
कुल पष्ठ :
752
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भ
७ शारिडलव, ८ भरहाज,* ६ फीशिक, १० काश्यप, १६
चसिष्ठ, १२ बात्पय, १३ सांचर्णि, १४ परासर। उक्त
सभी मद्षात्माग्ण इण्वेदी आश्वलायत शायाध्यायी थे |
खजाने यछ एटा दनेदो बाद् उन छोगो को राजशद्रपुरका
राज्य दिया था। इसके महूपिे राज्ञाने उन लौगेफे मध्य
भद्विगोबबालेको गिरिवनर्म पव॑ उनके, म्रध्य सनेफेतका
बैकुप्ठपंदके निकट श्राष्ण शासन प्रदान क्रिया था |
एसके सियाय उन छेगेकों पृथक पृथक दक्षिणा भी मिल
थी। उसी द्निले उक्त विप्रगण इस वीर्थम पृशित द्वोते
जा रददे दे ।
भव प्रएत उठता है, कि उक्त आ्राह्मणबंशोय बच्ुरात
फीन ये ? मद्राभारत गौर एशाणमें जरासन्धफें पित्तामद्द '
गिरिनजप्रतिष्ठाता झिस बसुराज्रका उच्छेख है, थे ज्ञातिके
क्षत्रिय थे, ब्राह्मण नद्दीं। इस प्रकार ध्राह्मण चसुराज्ञ ज्ञो
उलतनन्त प्यक्ति थे, इयमे सन्देद नदीं।
पूर्च दी लिय जाये हैँ, कि ईसा-जन््मके दो सी वर्ष
पद्ले शुड़च शक्ता भब्युदूय हुमा । विए्णयु भीर भागवत्त-
पुराणके मतसे--मौर्णध शीय शेष राजा बृहद्धथकी मार
कर पुप्पमित्नने शुद्धवश॒द्दों प्रतिष्ठा फी। पुष्पम्तित् घोर
वीद्ध-चिठ पी थे। दिव्याघदान भामक प्राचोन वीद्धप्र'थसे
पता चलता हैं, कि राजा पुष्यमित्नने अशोकको प्रतिष्ठित
बॉरासो दृज्ञार धर्भराजिकाको ध्च'स फरनेकी मन्ुमति दी
था | उनके दी पुत कालिदासके 'मालठ!वफ्ाग्विमित्ष' नाटक-
छे नायक थगिदिमिद् थे । अग्निमित्त भो अश्वमेघ यछ एव
वेदिक्षक्रिपाकाएडका उद्धार कर विण्यात हुए थे । इन्दीं
अग्निमितके पीतल बसुसित्र थे। बोघगयासे उन्तकी
शिलालिपि और नाना स्थानोंसे उनकी मुठ्रा माविष्ठत
हुईं दै। यद्दी वसुमित्र राजगुद्रमाह्यालय चणित घसुराज
हूं।, ब्राह्मण भक्त चछुमितने दक्षिणी ब्राह्मणकों राज्ञगृुह-
नगरी दान कर पूर्वभारतमें प्राह्मण्य-धर्मप्रचार करनेके
लिये उन्दें प्रतिष्ठित किया था | वसुमित्रके बाद भीर भी
पाँच शुद्ध शी राजामोने राजत्व किया। पोछे कप्व-
गोल वास देव नामक शुड्ड सेनापतिने अपने प्रभुक्नो मार
डाला भीर शुट्भ-सान्नाज्य अपने अधिकारमें कर लिया |
घसुर ( सांं० पु०) १ घसुलछ, देच। (ल्षि० ) २ दुष्ट ।
घसरक्षित ( शा० पु० ) पक धौद्ध जाचार्यका नाम |
नि पुर-बमुसारा
| चलुरध--एक ८ [पुराणाहुस्तार एक ऋषिक्ा नाप्त ।
| घछुरात (शा० प् | ( मार्क०प० ११४१३ )
' [एक्क प्रकारके देवता ।
| एक शम्धर्यक्ा चाप ।
हि
घसुयच _( हरा०
पस् यत्रि (सा० ( अमर ८1१०२७ )
| शिय |
चस झप ( शां० कै? सग्नि1 + शिव ।
बसूरेना (रां० पुदड्ी०) बछधवः रोच्ते असिम्रिन्षिति
पस रोचिस (झा; सशायां। उठ 2११६१) एरपि
, यत्र दांद्ठी ( बी' (पु०) १०एक मराद्रश ऋषिका
' इतिय। १ यह
नाम | ४० ) शगिय।
घस,रोधी ( एां० श्वस दीप्ति छाति गृह्मातीति छा-फ |
| बुर ( सं० धु८
देवना । ६ )१ धनपोष, घन बचाना । ४२ यज्ञ
| पखुचणि ( से!
मात । | १ दसदान, घन दैदा । (क्ली०) २ बृह-
पखुतन (स० वार ईशान फोणमी छिथतत पक दिश |
त्संद्िताद थ $ ) ६ घनो 1 २ पक ऋषिका नाम ।
पसुवाह्द ( स बत्वि० ) कोएयुकत
घछुपाहन ( स है? ) पसूनि निवास स्थादांति चिद्दतें
पस्चुविद ( साठ ासस्थानका प्रापक, जिसे रदनेके छिपे
डा 1 ( पु० ) २ अग्नि ।
जगह मिलो डैल्ली० ) घनदान |
बसुदृष्रि (स | ख्रो०) पक्र चौक्ष-मिक्षणोद्धा नाम ।
पमुशक्ति (२ 1०क्वि०) १ घनवान्, द्ौलतमंद ।
वछुभवस्
२ य्याप्तान्ष त्रि० ) सकन्दक्तो अशुदरा एफ माद्काफा
घसुझी ( स [त ६ ५०)
नाप!
त्रि० ) १ मद्दाघनो, यड़ा दौलतमंद । (पु०)
पक पा 41 नाम ।
पु०) बलसेन, कर्णराज्ञ |
वलुपेण (२ |० पु०) पक ऋषिका नाम।
घसुसार, ( | 1-९ ख्री० ) कुयेरकी पुरी; सलका।
घससारा | -«.
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