ईशावास्य दर्शन | Isavasya Darshana

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Isavasya Darshana by निगमानन्द परमहंस - Nigamananda Paramahansa

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्र शिष्य--यदित के श्मतुध्तार क्‍या यद्द संसार भी “पूर्ण” सिद्ध किया जा सच्ता है? जुरू-कयों नहीं। 'झग्माइडड ऊ कक छ छू ए ऐडी और थ॑ आः? ये १६ स्वर हैं। “क! से लेकर *म? तक २५ वर्ण शौर 'यरलव शपसहे” ये आठ वर्ण। सब मिलाकर ३३ ब्यंज्ञन हुए। जो जो स्वर या व्यंजन मिस जिस संख्या पर आता है उसकी बदी संख्या लिखी फिर उसक। योग करो। स्मरण रहे--अकारकों संझ््या नहीं लिखनीो । बढ केवल व्यंजनों के उच्चारण के लिए है-“ककारादिपु आकार उच्चारणार्थ:? “नानक विना ब्यंजनस्थोच्चारणं सम्भदति? (महाभाष्यम्‌ )। पहले “संसार! शब्द द्वी लो-(सू-अं-सू-भा-र-ऋ) है )। संझ्या ३२, “अं? को १५, नस की ३९, 'आः की २ 'र्‌! को २७ ओर “आ? कौ संझ्या नहीं लेनी । क्‍योंकि वह उच्चारणार्थ ऐ। संसार जगत्‌ हरि | | | ३३ कप रेरे १४ 7 २७ ब्२ 1६ ३ रे २७, र्कजत६,... ६३॥ ६++5६, २७ ब०८, १+८८६, ब्रह्म राख सीता राम | । | र्३ 3३२ बेर १७ 9७ 5] डे २ ३३ 9 १६ २४ जे 0 कल हे १०८ १+झ८६, भ४ड + ४४-१०८, 1+८5८६,




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