प्राचीन भारतीय शासन - पद्धति | Prachin Bharatiy Shasan - Paddhati

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Prachin Bharatiy Shasan - Paddhati by प्रो॰ अनंत सदाशिव - Pro. Anant Sadashiv

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शव बेदकालीन उमाजव्यदस्या ३ ३७ उमी आये जातियों में कुद्ध के एह॒पति के अधिकार और ए[द प्राय राजा के दी समान ये | जब कुटधय रुस्या का विस्तार हुआ और उसने एक ही गाव में रहनेया़े काल्‍्पनिफ या वास्तविक पूर्वज से उत्पत्ति म।ननेषाले अनेक छुछों के ठप का रूप धारण किया तब ग्दपति के अधिकारों के क्षेत्र की इंद्धे के शाय साथ उछवी व्यापकता में कुछ क्म्ती मी आयी। गांव के सबसे बढ़े दुल के सबसे बृद्ध यहपति को सास समाज अत्यत आदर मे देखता या औौर अन्य आमवृर्दों की सराह से वह ग्राम की व्यवस्था करता था। कऋग्वेद से शत होता है कि तत्वालोन आये समान कुदनों, ऋमनों, वि्शों और घनो* मे विमाल्ति या । घमन्‌ उमवत एक ही पूर्वन के बशर्णों का ग्राम था । इस प्रफार कै कइ प्रार्मों पर समूह बिश्‌ फइुछाता था और इनका मुलिया विद्यपति। विश या रुध्टन बढ़ा इृढ था और ल्ड्ाइयों में हरेक विश वी अपनी अल्य इकड़ी शेती थी। कई विशों को मिछाकर जन बनता था जिधके प्रमुख का जनपति या राजा कदते थे। प्राचीन रोम की समान ध्यपत्पा और ऊपर वर्णित वैदिक समाज-व्यवस्था में अदभुत साम्प था। बहों भी सबठे छोग अगर जिस एक दी वंश के छुटों का 6मइ था, कट्ट जे 8 मिलकर यूरिया! और १० क्यूरियों की एक 'ट्राइव' बनती थी । इप प्रकार वैदिक जत, सोम ऊ 'द्राइब', विश्‌ ,व्यूरिया' और जमन्‌ 'लेन्स! के बराबर था | उपर प्रमाण से स्पष्ट दै कि अय आये जातियों की मॉति मारत में भी प्रामतिद्वासिक कार में सयुक्त कुद्धब से हो शासन सस्या या विकास हुआ। कुद्धद ये गहपति का आदर और मान स्वामाधिक था ग्राम के मुखिया ओर घनपांत भी इसी परपरागत सम्मान के साजन हुए, और पारातर में ये ही सरदार ओर राजाओं के पदपर प्रतिष्ठित हुए! राज्यों के विस्तार के साथ सजा के अधिकारों करा भी विस्तार होता रहा | शातन संस्थाओं के प्रकार अप इर्मे यद देखना दे कि प्राचीन मारत में कितने प्रफार की शासन ६ क्रमश ) अपतकी ऑछें फोड़ दो सब भरिदनों ने रते तेत्रदार दिया। शुगशशोप को डत्के पिठा थे भकाक्षपीडित परिषर के प्राण के छिये बेच दिया पा। ( ऐ, प्रा सप्तम १६ ) ३ छह इउजनेन स दिशा स जम्मना स पुष्रदाल मरते घना भूमि 1 ८४२६ ३




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