अपराजिता | Aparazita

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अपराजिता / २५ सकती | किसी काम से देवद्त एक बार जब कलकत्ता आकर मंझली दीदी से मिलने गया था, तो वह सव अपनी आांयों से देख आया है । अपने आप माधव ने ही उससे पूछा, 'मैं बहुत वदनाम ही गई हूं न? द्विचकते हुए देवप्रत बोला, “मैंने मुना है कि भानुवाबू ने हो चुपचाप उधर के पक्ष को मुकदमे में पूरी मदद देकर मंझले डीजाजी को फमाया है, जिसमे वह स्वयं उनकी कुर्मी पर बैठ सकें 17 उपेक्षा के भाव से माधवी ने कहा, “हो सकता है। मैंने उससे पूछा नहीं है। सड़े धाव को कुरेदने की तबीयत नहीं करती 1 पर उसने गढ़शर कोई झूठी चीज नहीं बनाई | इतना ही किया कि सचाई न ददाई जाय ओर गुनाह की पूरी सजा मिले | बुरा क्या किया ?” बहते-कहते वह उत्तेजित हो उठो,“वता तो, शिसि चीज भी कमी थी। घर की दौदी कोई ऐसो वदशक्ल नहीं थी ! फूल जैसा सुन्दर एक लगा भी गौद में आ गया था । हमारा परिवार सुधी था, फिर भी उन्होंने रपये का सालच देकर उस गरीद लड़की का सवंताश कर दिया । वह एपया भी उनका अपना नहीं था। घेरात में देने के लिए सरकारी गपया था। अदालत में वह लड़की विमध्-विलखकर रो रही थो । संग्रे-सम्दधियों ने उसे त्याग दिया था। वह एकदम बेसहांट हो गई थी। उस वक्त अयर मुझे हाथ के पास वुछ मिल जाता तो कठपरे में पड़े अपराधी को वही खत्म कर देती ।” कुछ धाण चुप रहकर माधवी ने अपने को सयत किया | फिर बहा, “बेल से बाहर न आने तक बिना खायेन्सोये भौर अपने अवोध बच्चे की ओर बिना दैसे मैं रात-दिन वस उन्हीं का घ्यान करतो रहू, ऐमी पद्िद्रता साध्वी मैं नहीं बन पाई, भाई । सेकिन धर के लोग मेरी वजह से बदताम बयों हों ? जाकर प्रचार कर दे कि मैं मर गई हूं 1” ही माघवो के वाद है मजरी। चार्रों बहनों में सबसे ज्यादा सुस्दरा उसकी शादी तारानाथ के प्रमत्न से नही हुई । उसया अलकेश नाम के एक तदण से प्रेम हो यया 1 कानूनी दिवाह हों गया। उस समय तारानाथ वाराभसी में पे। शादी के दाद नवदम्पति ने धरवालों को आकर




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