गुलजारि शाइरी | Guljare Shayri
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8.03 MB
कुल पष्ठ :
328
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)किन श् १ ->
कलम खुब चलाई । राष्ट्रीयता एव जन-जागर्ण के बारे मे खुब जी खोलकर
लिखा । उस सब का उद्देध्य यह बताना रहा है कि जीवन बहुत बडी चीज है,
जिससे दमे कुछ करना चाहिए । जीवन स्वय जीने और दूसरों को जिलाने
के .लिए, अपना भौर दूसरों का बोक उठाने के लिए है:
दूसरो को जिसने दुनिया मे बनायर कामयाब । 7
-.... जिन्दगी उसकी है 'दानिश', उसका जीना है सफल ॥--दानिद्
अध्यात्म-वाद के सम्बन्ध मे उदू-शाइरो मे जो गहरी ड्वकियाँ लगायी, .
वह उद-शाइरी की अपनी बेजोड मिसाल है । जो व्यक्ति ईदवर-परमाह्मा; को '
ही सर्वे-सर्वा, कर्ता-घर्ता भर अपना माग्य-विधाता समककर अपने मापको
दीन-द्दीन मानते हैं, उनके मन को जगाते हुए, “व्यक्ति स्दय ही अपना जीवन-
निर्माता तथा माग्यविघाता हैं, यह दद्ति हुए 'इकबाल' उनकी अन्तरात्मा को
यो ककभोरता है «--
श्राहू किसकी जुस्तजू* श्रावारा रखती है तुझे ।
राह तु. रहरो तू. रदबर भी त, मंजिल भी तू ॥
काँपता है दिल तेरा श्रन्देश-ए-तुफा* से क्या ?
नाखदा* तू, बहर'तू, किर्ती भी तू, साहिल भी तू ॥
ढूढता फिरता है श्रय 'इकबाल' श्रपने-श्रापको ।
आप ही खोया सुसाफिर, झाप ही मजिल है तू ॥- इकबाल
उदू-शाइरो ने रुहानियत के जो चश्मे वहाये, उनके कुछ भोर भी
नमूने देखिए *-
श्रपने मन मे डूबकर पाजा सुराग-जिन्दगी* ।
तू भ्रगर मेरा नहीं बनता, न बन, श्रपना तो वन ॥--इक्वाल
वोह कब देख सकता है उसकी तजलली ।
जिस इन्सान ने अ्रपना जलवा न देखा ॥
फिराक गोरखपुरी
१ तलादा रे यात्री हे. मार्गेदशक ४ तूफान के डर से. ५, मल्लाइ
६ समुद्र ७. जीवनरहस्य ८ प्रकाश । 3० ”
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