गुलजारि शाइरी | Guljare Shayri

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Guljare Shayri by सुरेश मुनि - Suresh Muni

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about सुरेश मुनि - Suresh Muni

Add Infomation AboutSuresh Muni

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
किन श् १ -> कलम खुब चलाई । राष्ट्रीयता एव जन-जागर्‌ण के बारे मे खुब जी खोलकर लिखा । उस सब का उद्देध्य यह बताना रहा है कि जीवन बहुत बडी चीज है, जिससे दमे कुछ करना चाहिए । जीवन स्वय जीने और दूसरों को जिलाने के .लिए, अपना भौर दूसरों का बोक उठाने के लिए है: दूसरो को जिसने दुनिया मे बनायर कामयाब । 7 -.... जिन्दगी उसकी है 'दानिश', उसका जीना है सफल ॥--दानिद् अध्यात्म-वाद के सम्बन्ध मे उदू-शाइरो मे जो गहरी ड्वकियाँ लगायी, . वह उद-शाइरी की अपनी बेजोड मिसाल है । जो व्यक्ति ईदवर-परमाह्मा; को ' ही सर्वे-सर्वा, कर्ता-घर्ता भर अपना माग्य-विधाता समककर अपने मापको दीन-द्दीन मानते हैं, उनके मन को जगाते हुए, “व्यक्ति स्दय ही अपना जीवन- निर्माता तथा माग्यविघाता हैं, यह दद्ति हुए 'इकबाल' उनकी अन्तरात्मा को यो ककभोरता है «-- श्राहू किसकी जुस्तजू* श्रावारा रखती है तुझे । राह तु. रहरो तू. रदबर भी त, मंजिल भी तू ॥ काँपता है दिल तेरा श्रन्देश-ए-तुफा* से क्या ? नाखदा* तू, बहर'तू, किर्ती भी तू, साहिल भी तू ॥ ढूढता फिरता है श्रय 'इकबाल' श्रपने-श्रापको । आप ही खोया सुसाफिर, झाप ही मजिल है तू ॥- इकबाल उदू-शाइरो ने रुहानियत के जो चश्मे वहाये, उनके कुछ भोर भी नमूने देखिए *- श्रपने मन मे डूबकर पाजा सुराग-जिन्दगी* । तू भ्रगर मेरा नहीं बनता, न बन, श्रपना तो वन ॥--इक्वाल वोह कब देख सकता है उसकी तजलली । जिस इन्सान ने अ्रपना जलवा न देखा ॥ फिराक गोरखपुरी १ तलादा रे यात्री हे. मार्गेदशक ४ तूफान के डर से. ५, मल्लाइ ६ समुद्र ७. जीवनरहस्य ८ प्रकाश । 3० ”




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now