इक्दुकाराध्यायन | Ikdukaradhyayan

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Ikdukaradhyayan by श्री प्यारचन्द जी महाराज - Shri Pyarchand Ji Maharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(४० ) विसालकित्ती य तहें खुयारों, रायडत्यथ ठेवी कमलापडे य ॥ ३ ॥ छाया-पुस्पमागस्प कुमारी द्वापि, पुरोहितस्तस्य यशाश्र पत्नी | विशालकीर्ततिश् तथेन्नुक्गरा-राजाध्य देवी कपलायती च ॥३॥ अन्ययार्थ-(अच्) यहा पर (रपुस्त्यम ) पीरप्य पने (आग रथ) प्राप्त हुए (हो) दोनों (अपि) प्रधानता सूचक (कुमारी) कुमार (पुरोहित) ' तीसरा ? पुरोद्दित (वे) ओर ' चीया (तस्थ)उसकी (पत्नी) ओरत (यशाः) यशा नाम चाली (तथा) . तेमें ही 'पाचवा” (विशालकीर्सि३) विस्तीणकी्ि वाला (इच्ुकार:) $छुफार नापक (राजा) नरश (च) ओर “छट्ठा' (देवी) राणी (कमलावती) कम्रलायती नाम की हुई ॥३॥ भायांथे-छ पुरुष यथा शक्ति धर्म त्रिया कर एक दी स्वग के एक डी विमान में छ ही देवता हुए थे | वद्दा पे अपना २ शझ्ायु पूर्ण कर उन छुथो में से पक देव यद्दा इच्ुकार नास के नगर मे इचछुकार नामक नरेश हुपा ! ओर दूसरा एक देव इसी राजा के क्मलायती राणी हुइ ) त्तीसरा एक देव इसी सगर में शसु नामक राज्य पुरोदित इुआ। और चौथा एक देव इसी पुरोद्धित के यशा नाम धाली औरत हुई । और दो देव राज्य पुरोद्धित के पुत्र पने आकर हुए॥ ३ ६ मृल-जारेजरामच्चुभयाभिभूया, वर्टिविहारामिनिविद्वचित्ता




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