लेश्या - कोश | Leshya - Kosh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
14 MB
कुल पष्ठ :
340
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)३ लेश्या कषायौदय से अनुर॑जित योगप्रवृत्ति है--कषायोद्यर॑जिता योगप्रश्नत्ति-
ल्श्या ।
४ जिस प्रकार अष्टकर्मो के उदय से ससारस्थत्व तथा असिद्धल्व होता है उसी
प्रकार अष्टकर्मों के उदय से जीच लेश्यत्व को प्राप्त होता है |
लेश्यत्व जीवोदयनिप्पन्न भाव है। अतः कर्मो के उदय से जीव के छः भावलेश्याएँ:
होती हैं |
द्रग्यलेश्या पोदुगलिक है, अतः अजीवोदयनिष्पन्न होनी चाहिए--पओगपरिणामए
वण्णे, गंघे, रसे, फासे, सेत्त अजीबोदयनिप्फन्ने (देखें ०५१ १४) |
द्रव्यलेश्या क्या है १
१-द्रव्यलेश्या अजीव पदार्थ है।
२>यह अनत ग्रदेशी अष्टस्पर्शी पुदूगल है ( देखें श४व १५ )।
३--इसकी अनत वर्गणा होती है ( १७ )।
४--इसके द्वव्यार्थिक स्थान असख्यात हैं ( '२१ )|
५--इसके प्रदेशार्थिक रथान अनत हैं ( २६ )।
६--छेः लेश्या में पॉच ही वर्ण होते हैं ( २७ )
७-यह अमख्यात प्रदेश अबगाह करती है ( १६ )।
८--यह परस्पर मे परिणामी भी है, अपरिणामी भी है ( १६ व *२० )।
६-यह आत्मा के सिवाय अन्यत्र परिणत नहीं होती है ( २० ७ )।
१०--यह अजीवोदयनिष्पन्न हे ( ०५१ १४ )।
११ - यह गुरूलघु है ( १८ )।
१२-यह भावितात्मा अनगार के द्वारा अगोचर- अजय है ( ०५१ १३ )।
१३-यह जीवग्राही है ( ०५१ १० )।
१४--प्रथम की तीन द्वव्यलेश्या दुगंन्धवाली हें तथा पश्चात् की तीन द्वव्यलेश्या सुगधवाली
हैं (४० १५)।
१५--पग्रथम की तीन द्वव्यलेश्या अमनोग रसवाली हैं तथा पश्चात् की तीन द्रव्यलेश्या
मनोज्ञ रसवाली हैं ( ४० १६ )।
१६--प्रथम की तीन द्रव्यलेश्या शीतरुक्ष स्पशवाली हैं तथा पश्चात् की तीन द्रब्यलेश्या
ऊष्णस्निग्ध स्पशवाली हैं ( ४० १६ ) |
१७--प्रथम की तीन द्रव्यलेश्या वर्ण की अपेक्षा अविशुद्ध वर्णवाली हैँ तथा पश्चात् की तीन
द्रव्यलेश्या व्शुद्ध वर्णवाली हैं ( प्ृ० १६ ) |
श््प--यह कर्म पुदुूगल से स्थूल है।
१६--यह 'द्वव्यकषाय से स्थूल है |
२०--यह द्रव्य सन के पुदूगलों से स्थल है ।
२१--यह द्रव्य भाषा के पुदुगलों से स्थूल है |
२२-यह ओऔदारिक शरीर पुद्गलों से सूछम है|
२३--यह शब्द पुद्गलो से यूक्म है |
[ 7 ॥
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