घेरण्ड संहिता | Gherand Sanhita
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
159
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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चे'रडसहिता |
के कुछ भौरशो चोखा देते हैं। औैःर उनके पास फुछ ऐसे ज्ञानी मनुष्य
जाते हैं जे योडे हो लाभ में फूल उठते हैं जैःर वे अपने के सिद्ध
सम पैरो के निरे अहवृगरफ समफ बेट जाते हैं उनके उस अहफ़ार से
क्षागे श्र सुखोत्पादक थिज्ञान,की उन्नति नहों छाती बल्कि जे फुछ
चोदा बसा रहता है धह्ट भो फच्चे के कारण भद्ृर हे जाता दे । इससे
झहफार प्को अराबर कई सी दुश्मन दुनिया में नहीं है। इसके उप>-
राप्त घेर जी कहते हैं फ्हूकार छोड फे जिस बस्तु के। सिद्ठु किया
नाई उर्सर्भे भश्पास करे, इखपर द्रशान्त देत हैं ॥
छ्भ्यासात्कादिवर्णानि यथाशाखाणिवोधयेत् ।
तथाय्रागंसमासातद्म तत्वज्ञानंच लभ्यते ॥ ४ ॥,
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जैसे भभ्य!स करते २ककरादि वर्ण चोम्ह पडने लगते हैं जौर उनके
परियय के अनन््तर भागा प्रकार के शास्त्रों सें क्षोच्र हे जाता है इसी
प्रक्षार येग(स्यास करते २ सत्वज्षान (जे। पहले कटद्ट जाये हैं) मराप्त ऐेर
जाता है ॥
सात्पयें यह कि झहफारी मनुष्य का चित्त अभ्यास में कम लगता
धै यह अपनी गुरुआईसे आगे दूसरेके चपदेश पर कस ब्िज्रवास लाता
है इस्ते ठिलाओ ऊऋः जुएती है लेप अइह्कार के छेछ फर और हिलाएे फे।
दूर बाय हे अभ्यास में टू देने से येग शाछ्त्र का फल प्राप्त हैताहै ।
कथण कहने से महों ॥ इसके उपरान्त कछ्ते है कि जय यह शरीर
थोड़े दिला बाद जरा व्याथि से पलित हा नए्ट थे हो जायगी सब
थेषहे दित्त के लिये दपो इतनी शिडवना करें कि साथ प्रकार सासररिदा
इतर छोड़ के एकान्त लिजेग भें घैठ कर शरीर के। कष्ट दें । इस पर
द्रष्टान्त देते है ॥
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