अथर्ववेद भाग - 4 | Atharvaved Bhag - 4

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Atharvaved Bhag - 4  by श्रीपाद दामोदर सातवळेकर - Shripad Damodar Satwalekar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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४४१८, अथर्ववेदके सुभाषित सूक्ति-संग्रह विभाग 8, काण्ड ११ से १८ तक इस चतुर्थ भागमें काण्ड १$ से १८ तकके सुभाषितोंका संग्रह है । इसमें कुछ प्रकरण हैं । वघ्तुतः इस विभागों प्रकरण विसागरसे ही काण्दड विभाग हैं। इसकिये सुभा- प्रित भी प्राय, उसी ऋमसे दिये हैं। कुछ सुभाषित उनके अर्पोके बुसार हधर उधर किमे हैं। शेष काण्ड विभागके अनुसार ही रखे हैं। प्रथम ईश्वर घिंपयके ुनापित देखो-- ईश्वर उच्छिए्ट द्यावाएथिवी विश्वे भूत समाहित॑ ( १॥७२ )-- इंखरमें यु, शायेवी तथा घो बना है बढ सब पिश रद्द है क्रफ्लाम यजुरुच्चिछ्ट (११७५/५)-- ऋतेद, सामवेद भौर यहरेंद इस ईश्वरमें रद दें । क मय भूमी! समुद्रा उच्छिप्रेन्‍धि श्रिता दिवः ( ११७७४ )-- नो सूमियाँ, छव समुद इंशरके आधारसे रहे हैं । | ऋते सत्ये तपो राष्ट्र थमो घमेश्व कर्म चर भूत अविष्यदुच्छिए थी छक्ष्मीयंल पके ( ११७१७ )-- हत्म, ऋष, सप, राष्ट्र, धम, घम, कम, सूतर, सविष्य, थौये, छद्टमो, पलिए्ठका बह यह घब परम्रेश्नाके भाघारसे रहा है । यश प्राणति प्राणिन यच्च पद॒यति चश्षुपा। उच्छि्टा- अआप्विंर सर्वे दिवि देवा दिपिधिताः (१५९२३ )--जो प्राणते जीवित दे, जो कांलसे देखता है, जो दुशोकरमें पा अम्पप्र देव हैं ये सप दरमेधरसे रधपच्र हुए हैं | हैं [अयर्े. प. मा. ४] ऋचः सामानि छन्दांसि पुराण यज्जुपा सह। उाच्छिशज्ञाशिरे से ( ११७२४ )-- ऋग्वेद, सामवेद, छम्द, यजुवेदके साथ पुराण थे सब परमे- श्ररसे बने हैं । * प्राणापानों चक्षु, श्रोममश्ितिश्व ख्षितिश्व या। उच्छिशज्ञाहिरं सर्वे ( ११।५३५ )-- गण, अपान, झोख, कान, भौतिक तथा कभातिक पदार्थ ये सब परमेश्वरसे बने हैं ) आननद्रा मोदार भमुदो5भीमोदमुद्‌ शव ये। डच्छिण- + औछिरे से ( ११०२६ )-- मानंद, मोद, विद्येप भागन्द, प्रश्वक्ष लानाद, सुख ये सप परमे- श्रसे दी बने दें देवाः फितरो पा न्धर्बाप्सरसभ् ये। उच्छिए- झक्षिरे से ११७२५ )-- देव, पितर, मजुष्प, गधवे, हुप्सराएं ये स्व परमेशचरसे शमी हैं । यो रोदितो विश्वम्रिदं जजान, स सवा राष्राय सुभूत विमतु ( 1३८४) )-- जिश्त देवने यह घम उत्पष् किया पह मुझे इस राष्ट्रके लिपे ढराम् माण-पोपषण- पूरक धाएण करे 1 चावाएशिवी जनयन देव पर ( 4$1क्‍1२६ )-- छु मौर प्पियोदा इनानेवाछा एक देद है । य इमे चावापूधियी जजान यो द्ायि झत्या मुय- नानि बस्तें ( 18181 )-- जो यू भोत प्र्याशे वत्प् करता है क्षौर ओ सब भुवनोंकों क्षपना चोछा बनाकर पहना है । यो माप्यति प्राणपति, यम्मात्‌ भ्राणम्ति भवनानि पिश्वा ( १३७३ )-- शो जीवित रघता दे और मारठा है, जिपप्े पद मुश्न जीविएठ रहते हैं न




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