प्रसाद मन्जरी | Prasad Manjari
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
153
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)देव स्तुति तथा ग्रंथकर्ता का परिचय
गणाधिप॑ नमस्कृत्य देवी सरस्वती ठथा
अक्षा विष्णु महेशारदि सूर्य दिनकर सदा ॥१॥
शिल्पशास्रप्रकत्तारं विश्वकर्मा भद्दामुनिम् ।
मनसा बचसा नत्वा प्रंथारम्भ करोम्यहम् ॥श॥
गणोंके अधिपति श्री गणेश, देवी सरस्वती, श्रद्ा, विष्णु, महेश आदिको ओर
दिनको प्रज्यलित करने वाले सुयको नमस्कार करके शिल्पशाञ्ोकों उत्कृष्ट करने-
वाले (प्रयोजक ) भहामुनि श्री विश्वकर्माकों मनवचनसे यंदन करके में प्रभाशंकर ,
इस ग्रथके अन्वादका प्रारंभ फरता हूं ।
वंशेउस्मिन् रामजी शिल्पी ख्यातो5व॑ वास्तुकमंणि ।
तस्मिमवान्वयेजातः.. अ्रभाशक्कम.. पद्चममः ॥३॥
सूत्रधार इति ख्यातो नाथनामाभिधानवान् |
बास्तुमझरी नामार्य प्रंथः प्राणकतवान् शिवः ॥9॥
तस्मिन्नैवान्तरगते. प्रासादमझरी संक्षके। ,
सुप्रबोधिनीं टीकां ग्रन्थेडस्मिद हि. करोति सः ॥५ा।
भारहाज़ गोत्र जिसमे श्री रामजीभा जैसे वास्तुकर्म में प्रख्यात शिल्पी हो गये ।
ऊसी कुलमे श्री ओघडभाइ के कनिप्ठ पुश्न प्रभाशकृूर पांचवी पीढीमें हुए। नाथजी
नामके विख्यात सूत्रधारने फल्याणकारी “ बास्तुमझरी ग्रन्थ सोलहवीं शताब्दिमें ”
छिखा । जिसके अंतर्गत “ आ्रासाद मप्लरी मामके ग्रन्थ पर सुप्रवोधिनी नामफी
टीका उसी विख्यात झुछमें पैदा हुए म्थपति श्री प्रभाशंकरने लिखी है ।
गश्ना। जधिपति ओव। श्री गणुपतिने, श्री सरस्वती हेपी लने प्रद्षा,
विष्छु जने भरेश स्याहि देबाने जने दिवसने हब्दशवण अरनाश सेव सये-
नाशयणुने नभश्थार 3रीने तथा शिवशाखना इछुष्ट अरवारा (अगे१४ )
भर भुति श्री विश्वप्भौने भन जने पाणोीथी नभव्थार ४रीने है भभाशंधर
नम भयता जअनबुपादना आरस 3३ छा.
वास्तुध्भमां अण्यात खेष के सारक्षारर गेत्रभां श्री शभधष्ठशा चाभना
स्थपति थया तेमना पंशमभां पांयमा श्री अशाशंडर प्रे स्थपति खे।धरलाधना
इनि% चुद थया तेमेले श्रीनाथ९छ नाभना विज्यात खूचधारे अध्याणुआरी
+ वारदुभश्री ” नामने। अय पछेतां सेणनी सदीभां सथेवे। पेबा सावर्भत
« प्रासाइ मज़री ” नाभने। अय 06पर खुप्रयोधिनी नाभनी टीडा ते अखिर्
व शझ्॒गभा एत्पन्न थयेता श्री अ्रभाश5र स्थपतिशे 3री-
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