षटखंडागम खंड 4 | Shatkhandam Khand 4

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Shatkhandam Khand 4 by हीरालाल जैन - Heeralal Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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४, २, है. ] बेयणमहादियारे सोलसणिशओओगदारणिदेसो [ ईै केरिसो पओओ होदि त्ति णयमस्सिदृथ पआअपरूवणई वेयणणामविद्दाणमागयं । वेदण- दव्वमेयवियर्पप' ण हादि, किंतु अंगयवियप्पमिंदि जाणावणई संखेज्जासंखेज्जपोग्गलपडिसेई काऊण अभव्वसिद्धिएद्दि अणतगुणा सिद्धेहितो अणैतगुणद्वीणा पोग्गलक्खंधा जीवसमवेदा बेयणा होंति ति जाणावणई वा वयणदव्वविहाणमागय ' संखेज्जखत्तोगाहणमासारिय अंग्रु- लस्स असंखेज्जदिभागमार्दि क्रादूण जाव घणलागा ति वयणादव्वाणमेगाहणा द्वोदि त्ति जाणावणइं वेयणखेत्तविहदणमागर्य । वेयणदव्वक्खंबा वेयणमादमजाहिंदूण जहण्णेणुक्कस्सेण य एत्तिय क'लमच्छदि त्ति जाणावणईं वेयणकालविहाणमागय । सेखज्जा परखज्जाणतगुण- पडिंसहं काऊण वेयणदव्ववखंबम्मि अणेताणतभावविय'पजाणावणई वयणमभावविहाणमागय । वेयणदव्वक्खेत्त-काल-भावा ण णिक्‍कारणा, किंतु सकारणा त्ति पण्णवणई वेयणपच्चयविहाण- मागये । जब णोजीवा एगादिसजांगण अड्अमंगा वेयणाए सामिणा हांति, ण हति थि णए अस्मिदण पण्गवणइ वयणमामित्तविद्यणमागये । बज्ञ्माग-उरद्दिण्ण -उवसंनययाडि भेणण एगादि- संजोगगएण णए्‌ अस्थिदूण वयणवियप्पपण्णवणई वंयण्णवयणविहाणमागय । दव्वादि भेय- प्रयाग होता है, इस प्रकार नयके आश्रयस प्रयागकी प्ररूपणा करग्नके लिये चेदननाम- विधान अधिकार आया हे । बदनादव्य एक प्रकारका नहीं है, किन्तु अनक प्रकारका है; एसा ज्ञान कराने | लिय अथवा संख्यात व असंख्यात पुदूगलोंका प्रतिपथ करके अमव्य- सिद्धिकोंल अनन्तगुण ओर सि्धोंस अनन्तगुण हीन पुदुगलम्कन्ध जीवसे समवेत दाकर चेदना रूय होत हैं, एसा जान करानके लिय बदनद्वव्यविधान अधिकार आया है। चदनाद्रव्योकी अवगाहना संख्यात-क्षत्र नही ह, किन्तु अग्रुलके असंख्यातव भागस लेकर घनलेाक पर्यन्त है; एसा जतकछानके लिय बदनक्षत्रविधान अधिकार साया है। वदनाद्र॒व्य- स्कनन्‍्थ बदनात्वका न छाइकर जपधन्प भार उत्ए रपल इतन काल तक रहता है, ऐसा शान करानक लिय वदनकालबविधान अधिकार आया ह । वदनाद्रव्यस्कन्धम संख्यातगुणे, अध्ख्यातगुण और भनन्‍तगुण भावविकत्प नहीं ह€. फिन्‍्तु अनन्तानन्‍्त भावविकदप हैं; ऐसा ज्ञान करानके लिये वदनभाववधिधान जाथकार आया है। वदनाठव्य, वदनाक्षेत्र, चेदनाकाल और वदनाभाव निप्कारण नहीं हैँ, किन्तु सकारण “: दस वातका ज्ञान करानेक लिये वदनप्रत्ययाविधान अधिकार आया है | एक भादि खेयेगल आठ भंग रूप जीव व नोजीव वदनाके स्वामी द्वात है या नहीं हं।ते है, इस प्रकार नये के स्रयसले ज्ञान करानके लिये वदनास्वामित्वाविघधान अधिकार आया है | एक-आदि-संयाग गत वध्यमान, उदी्ण और उपशान्त रूप प्रकतियोंक भरस जा वदनाभद प्राप्त हात है उनका नयोके आश्रयस ज्ञान करानेक लिये वेदन-वदनविधान अधिकार आया है। द्वव्यादिके भदंसे भेदको प्राप्त ३ अतिषु “ -मियत्रियप्प॑ ! हति पाठः |




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