श्रीमद भागवत माहातम्य | Shrimad Bhagvat Mahatamya

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Shrimad Bhagvat Mahatamya by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( २७ ) --इस मन्त्रसे उसके छछाटमें तिहक कर दे | फिर यजमान व्यासासनकी चन्दन-पुष्प आदिसे पूजा करे | पूजनका मन्त्र इस प्रकार है--४3» व्यासासनाय नमः? तदनन्तर कथावाचक आचार्य ब्राह्मणों और बृद्ध पुरुषों- की आज्ञा लेकर विग्रवर्कको नमस्कार और ग्रुरुचरणोंका ध्यान करके व्यासासनपर वैठें | मन-ही-मन गणेश और नारदादिका स्मरण एवं पूजन करें | इसके वाद यजमान नमः पुराणपुरुषोत्तमायः इस मनन्‍्त्रसे पुन: पुस्तककी गन्ष, पुष्प; तुरुसीदल एवं दक्षिणा भादिके हारा पूजा करे | फिर गन्ष, पुष्प आदिसे वक्ताका पूजन करते हुए निम्नाड्लित छोकका पाठ करे--- जयति पराशरखुनुः सत्यवतीहृद्यतन्दनो व्यासः | यस्पास्यकमलगलितं वाइमयमस्त जगत्पिवति ॥ तत्पश्चमात नीचे छिखे हुए छोकोंको पढ़कर प्रार्थना करे-- शुकरूप. प्रवोधक्ष. सर्वशाखविशारद्‌ | एतत्कथाप्रकाशेन मदशानं॑ विनाशय ॥ संसारखसागरे मग्नं॑ दीन॑ माँ करुणानिधे। कर्मग्राहय॒हीताई. मामुद्धर भवाणंवात्‌ ॥ इस प्रकार प्रार्थना करनेके पश्चात्‌ निम्नाक्लित छोक पढ़कर श्रीमदूभागवतपर पुष्प, चन्दन और नारियिछ आदि चढ़ाये--- श्रीमद्भागवताज्यो5यं प्रत्यक्ष/ कृष्ण एवं हि। स्वीकृतोईसि मया नाथ मुक्‍्त्यर्थ भचसागरे ॥ मनोरथों मदीयो5्यं सर्वथा सफलस्त्वया। निर्विष्नेनेव कर्तव्यों दासो5६हं तब केशव ॥ कथा-मण्डपमें वायुरूपधारी आतिवाहिक शरीखाले जीववबिशेषके लिये एक सात गाँठके बाँसकी मी स्थापित कर देना चाहिये | तत्पश्रात्‌ वक्ता भगवानका स्मरण करके उस दिन श्रीमदूभागवतमाहात्म्यकी कथा सब श्रोताओंको सुनायें और दूसरे दिनसे प्रतिदिन देवपूजा, पुस्तक तथा व्यासकी पूजा एवं आरती हो जानेके पश्चात्‌ वक्ता कथा पआररम्भ करे | संध्याकों कथाकी समाप्ति होनेपर भी नित्य- प्रति पुस्तक तथा वक्ताकी पूजा तथा भारती, पसाद एवं तुल्सीदलका वितरण, भगवननामकीतन एवं शहृध्वनि करनी चाहिये | कथाके प्रारम्भमें और वीच-बीचमें भी भू जब कथाका विराम हो तो समयानुसार भगवन्नामकीर्तन करना चाहिये। वक्ताको चाहिये कि प्रतिदिन पाठ प्रारम्भ करनेसे पूत1र एक सौ आठ बार ५३» नमो भगतते वाहुदेवाय? इस द्वादशाक्षर मन्त्रका अथवा ४5» क्लीं कृप्णाय गोविन्दाय गोपीजनवल्छमाय खाहा? इस गोपाल-मन्त्रका जप करे | इसके बाद निम्नाज्लित वाक्य पढ़कर विनियोग करें--- 3» अस्य श्रीमदभागवत्ास्यस्तोत्मन्जस्य नारद- ऋषि! वृहतीच्न्दः श्रीक्ष्णपरमात्मा देवता बल्नवीज॑ भक्ति! शक्तिः ज्ञानवेरास्यक्रीहक॑मम श्रीमद्भगवत्‌- प्रसादापिद्धवर्थ पाठे विनियोगः | विनियोगके पश्चात्‌ निम्नाद्लित रूपसे न्यास करें- क्रष्यादिन्यात/--नारदर्पये नमः ग्रिरापि | वृहती- च्न्‍न्दसी नमः मुखे | श्रीक्षप्णफमात्मदेवताये नमः हृदि | वह्वीजाय नमः गुल्े । भक्तिग्रकाये नमः पदयो! । ज्वानकैराग्यकीलकाम्यां नमः नाभी। श्रीमद्भगवत्मतादिद्ययर्थकपाठविनियोगाय नमःसर्वाज्ञे | द्वादशाक्षर मन्त्रसे कल्यास और अड्डन्यास करना चाहिये अथवा नीचे छिखे अनुसार उसका सम्पादन करना चाहिये-- करन्याप्/--3 क्लां अल्लुष्टाभ्यां नमः | 3% क्लीं तजनीभ्यां नमः | 3४ क्ठूं मध्यमाभ्यां नम/। ३४ क्लें अनामिकाभ्यां नम। | 3० क्लों कनि्ठिकाभ्यां तम। | 3७ क्ल/ करतलकरपृष्टाम्यां नमः | अड्जन्याप्त---$2 क्लां हृदयाय नम। | 3४ कली गिरसे खाह्म | 3“ कहूं ग्रिखाये वपद्‌ | 3४ क्टें कवचाय हुम्‌ | 3४ क्ढों नेत्रत्रयाय वीपट | 3४ कला अस्त्राय फट | इसके वाद निम्नाक्लित रूपसे ध्यान करे--. कस्तूरीतिछ॒क॑ छलाटपटले वक्षःस्थल्ले कौस्तुम॑ नासाग्रे वरमोक्तिक करवले वेणुः करे कह्ृणम्‌ | सववाह्े हरिचन्दनं सखुललितं कण्ठे च मुक्तावलछी गोपख्रीपरिवेष्ठितो विजयते गोपालचूडामणिः ॥ अस्ति खस्तरुणीकराम्रविगलत्कल्पप्रसनाप्डुत॑ चस्तु परस्तुतवेणुनादलद्वरीनिवोणनिव्योकुलम्‌ । स्रस्तस्नस्तनिवद्धनीविविलसद्गोपीसहस्नावृ्त इस्तन्यस्तनतापवर्गमखिलोदारं




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