हाड़ी शतक | Hadi Shatak

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Hadi Shatak by नाथूसिंह महियारिया - Nathusingh Mahiyariya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हाडी शतक मर दिया। लेबिन अब वे ही हाथ, स्वर्ग में पहुँचने पर श्रपने पति के विवाह-कक्ण को खोलने मे विलव कर रहे है! पिउ श्ररियां घड़ खोलिया, अब तो खोलो श्राय । हुडी बंधिये डोरडे, बेठी सुरपुर मांय॥१॥। शब्दार्ष - पिउ>पति, भ्रिया>शत्रुप्रों बी, खोलियारूवाट दी । भावार्थ -हाडी भ्रपने पति से बहती है-हे प्रियतम ! युद-भूमि में भापने तलवार से शत्रुओं वे घड खोल दिये हैं (तलवार से शत्रुम्रों वी ग्देनें काट दी हैं); श्रव तो झ्रावर भेरे विवाहयबण फोलो ! यह झ्ापपी हाडी, जिसके हाथ में विवाह-पवण बेंधे हैं, स्वर्ग में बैठी श्रापवी प्रतीक्षा कर रही है । हाडी सुरपुर रे मेंही, सुर नारियाँ गवाय। तो रावत रण नहें तने, ओो्कू रही सुखाय ॥रणा १३




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