मेधाजनन संगठन और विजय भाग - 5 | Medhajanan Sangathan Aur Vijay Bhag - 5

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Medhajanan Sangathan Aur Vijay Bhag - 5 by श्रीपाद दामोदर सातवळेकर - Shripad Damodar Satwalekar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अधर्ववेदका सुबोध अनुवाद ( मांग पांचवां ) मेधघाजनन, संगठन और विजय विषयानुक्रमणिका विपय भूमिका बुद्धिका संबर्धन करना (का. १ तू १) घुद्धिका संघधेन करना सनन अनुसंधान मेधाबुद्धि ( का, ६ सू. १०८ ) तपश्चर्यासे मेघाकी प्राप्ति (कां ७ सू ६१) मन्रका चल यढाना ( कां. २, महू. १२३ ) मनका बल बढाना सानसिक शक्तिका विकास मानत्तिक दशक्ति-विशासके सावन-वत्ययभाव शुभवचत ज्ञान जीवित वाणी झालाछेदन असंगास्त्र और ब्रह्मास्त् सप्त प्राण आठ प्रंधी संयमका सागे मरनेकी विद्या निर्भप ऋषिकुमार आत्मवदृभाव- एकके दु खसे दूसरा वु.खी ज्ञानफे विरोधी आनुवशिक संस्कार ईश्ञ-प्रार्थना घन्धनसे सुक्त द्वोसा ( का. & सू. ६३) * वन्धनसे मुक्त होना पारतंत््यका घोर परिण्णम पाश्य तोडनेसे छाम परस्परकी मिन्नता करना ( कां ६, सू ४२ ) जे पृष्ठ विपय कोष ७ | अप्निकी उध्वंगाति (कां ५, हू २७) ८ यह्धका महत्त्व ९. | ब्राह्मणघर्मका आदेश (का. २, सू. ६ ) १० घाह्मणघर्का आदेश १० अग्विका स्वरूप श्र दीप आपु्प १९ ज्ञान-प्राष्ति $। स्रत्यनिष्ठा १३ अपने तेजका वर्षन १9 तैजका प्रकाश १छ ऐद्वर्यप्राष्ति १्छ स्वपक्षीयोंकी उन्नति श्छ अपने घरमें ज्ायना १8 उत्साहसे पुदषार्थ श्र मित्रभाव रेप चित्तवृत्तियोंका सुघार रैष क्रम्पोकित अलंकार पृ अरणियोंसे अग्नि १5 / #फ़क्ने छौटा देना | का, ३, कू. ७) रद शापको छोटा देना 51 शापका स्वरूप भ्छ डुर्वाका उपयोग श् अनोविकारोसे हाति श्८ शापको दापस करना श्र योग्य मित्र है दुष्ट हृदय १७ सुक्तके दो विभाग २० | हृदयरोग तथा कामिला रोगकी चिकित्सा श् ( का. १, सू २२) पृष्ठ र्१्‌ श्१ृ २३ श३ श्५ श्ष 8 र्५ ड््प श्५ २५ श्५्‌ श्दृ श्६्‌ श्द्द म्व श्६ृ श्द १७ ्छ श्८ श्ट श्द श्र श्र ३० ३० ३० ड्ृृ




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