महादेव गोविंद रानडे | Mahadev Govind Ranade

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जी । होता तो बड़ी'. चरफी आप खा जाता, चाहे उसकी माँ को आज्ञा इसके विपरीत हो ह्ोती-1 पर रामड़े को तो दूसरों ही के लिये जीना था । सन्‌ १८७३ में इनकी माता का देहात हुआ। उस समय इनकी अवस्था ११ व की थी । हर (२) शिक्षा । मख्ततर्तंणा ग1ै88 10 77076 हटां0पघरड गरांड्डंणा ६0 फुल पक्का 10 गाेट्परौ०४६९ 109७ हि पा) शाते छह ऊाजा णा लल्तेपी५ए हाते लत ++0०णाएशच्ल्‍९- फोल्द्वापुर में उस समय पांडाया ताला दिवेकर एफ प्रसिद्ध अध्यापक थे । रानडे ने मराठी की प्रारंभिक शिक्षा इन्हींसे पाई। उन्हीं दिनों फोल्द्ापर रियासत के रेज्ञिडेंट के देश्श्ाफ नाना मोरोजी थे जो आगे चलफर पधंवई के प्रेमिटेंसी मजिस्ट्रेट हुए और जिनको शावबद्दादुर की उपाधि मिली। इन््रोने फोल्ट्रापुर में एक अँप्रेडी स्कूछ ग्योला था जिसके प्रथ- माध्यापक मिम्टर कृष्णणव चापाजी थे जिन्होंने इंग्लें्ट देश में भ्रमिद्ध विद्वान प्रोफेसर नरी प्रीन से शिक्षा पाई थी । भरादी पदषर रानडे इसी स्कूल में दाखिल हुए । यहों अप्रेडी के बटुत थोड़े हास थे। इसलिये रानड़े और इनके साथी बीते चाहते थे दिः दंदइ जावः पढ़ें, परंतु रानडे वी अपने पिता से बहने दी टिम्मित नहीं पडती थी । अंत में इन्होने चोतने के दिता ले कष्टा और दीतन ने इनफ्े पिता से ।




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