वर्धमान जीवन - कोश | Vardhamana Jivan - Kosh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्राहप, अपपभ्रद् भाषा में लिखें गये महाधीर के चरि ग्रष्थों से भी सामग्री का सकछन किया गया है। इस तरह यह घास्तविक रूप से 'वेमान जीवन-फोश' तमाम को घार्थक फरधा है । सपादक श्री घोरढिया इस परिश्रम साध्यक्रार्य के लिए पन्यवाद के पात्र हैं । भौष सकषछन करते में उन्होंने अपनी बहु श्रुत्॒ता का पूरा परिचय दिया है--इसम सन्देह नहीं । इस कोद में अव भगधान महाघीरा के जीघनके विषय में शोघपुणं चरित लिखनेको धामग्री घिद्रानों के पक्ष उपस्यित कर दी है अधएप फोई विद्याम भगवात्र महाघीश के घद्धित को आधुनिक पद्धति सै लिखना चाहे तो उसके छिए यह ग्रन्य मार्गदर्शक धन सकेगा । एक क्षप्ति की भोर ध्यान दिलाना भाषद्यक है । जो ध्वतरण दिये है उनमे काल- क्रम का ध्यान एसना जरूरी होता है । पधहरों के देने के क्रम सर्वप्रथम श्रागम उसके बाद उत्तकी टीकाओं में त्ियु क्तिः भाष्य, चूणि और सस्कृठ टीका देने के वाद ही पठमचरिय, उत्तरपुणाण, त्रिशलकापुरुषचरित्र दि का निर्देश किया जाय तब ही भ० महाघीर फी जीवन फथामे फोन-सी बात किस ग्रन्थ में सर्वक्यम दो गई इसका घोष होना सथठ बनता है। इस क्षति की शोर इसलिए ध्याव दिलाना जरूरी है कि श्री बांठियाजी की सामग्री मे से धनी ऐसे फई कोश प्रफाशित होने की सम्भाषना है। अहतएंव मेणा सपम्ननिवेदन है कि श्री घोरड़िया अगले कोशों में श्वत्तरण देने के समय काछक्रम का क्षषह््य ध्यान रखें । पहमदाबाद “-दल्सुख साल्वणिया ३०१२-७६ ( 298 )




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