आत्म - दर्शन | Aatm - Darshan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
152
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कछ कार्यसद्धि के पश्चात् शनैः शनैः ज्ञात हो
जायेगा।
दोनों बालाओं ने साञजलि शीष झुका कहा-
'पपितदेव! आपकी आज्ञा का अक्षरश: पालन करने का
प्रयास करेंगी और जो एतद्विषषक कला-कौशल' आज
त्तक हमने सीखा है, उसका प्रयोग करने में किसी प्रकार
की त्रटि नहीं होगी। राजकीय नाट्यमजञ्च के सत्रधार के
जाते ही मनि आषाढ़भति अति कमनीय क्रिशोरवय के
मनि का रूप धारण किये हए कक्ष में प्रविष्ट हए
दोनों बालाओं ने मनि के मन को जीतने के लिये प्राण
पण से सभी प्रयास किये। मनि केवल मोदक ग्रहण करने
के लिए ही चौथी बार उस कक्ष में प्रविष्ट हुए थे। उन्होंने
उन दोनों बालाओं के मन को विचलित कर देने वाली
भावभंगियों की ओर कोई ध्यान नहीं दिया। न उनके
तपोपृत अन्तर्मन में किसी प्रकार के विकार को प्रवेश
करने का अवकाश ही प्राप्त हआ। भिक्षा प्रदान करने के
स्थान पर कटाक्षनिक्षेप और कामोत्तेजक भ्र-भंगियों के
प्रयोग को देखकर मनि आषाढ्भति ने मख मोडा और
सौपान की ओर चल पड़े।
ज्येष्ठा तडित् की चमक के समान उनके सम्मुख आई
और हठात् घड़ाम से निश्चेष्ट हो द्वार पर गिर गई।
कनिष्ठा बाला ने त्वरित गति से आगे बढ़कर अपनी
अग्रजा के मस्तक को अपने अडक में रखकर व्यजन
आत्थ-दर्शन/ ९,
User Reviews
No Reviews | Add Yours...