वैज्ञानिक विकास की भारतीय परम्परा | Vaigyanik Vikas Ki Bharatiy Parampara
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
19 MB
कुल पष्ठ :
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about डॉ. सत्यप्रकाश - Dr Satyaprakash
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)वैदिक कालीन प्रेरणाएँ १
इस युक्त में किसान के हलादि उपकरणों का वर्णन हैं--
शुन बाहाः शुन नरः शुर्न कृपतु लाइलम ।
शुन वरचआा वध्यन्तां शुनमष्टामुदिक्षय ॥४॥ सह
शुन नः फाला विकृपन्तु भूमि शुन कीनाशा अभियस्तु वाहेंः |
शुन पर्जन्यों मघुना परयोभिः शुनासीरा शुनमस्मासु घत्तम्॥८॥
हमारें वाह ( बैल ) और मनुध्य प्रसन्नतापूर्वक कार्य करें, हमारी क्यारियों में
प्रसन्नतापूर्वक हल चल्णवें, हमारी वरत्राएं ( शशियां, चमड़े या रत्सी की ) ठीक॑ से
बँधी रहें, और हमारे अष्टा ( चाबुक, कोड़े, हॉकनेवाले ) ठीक से कार्य करें । हल के
फाल भूमि को अच्छी तरह खोदें अर हमारे कीनाश ( इल्वाहे » बैल्यों के साथ ठीक
मे चले | पर्जन्य ( मेघ ) हमारे लिए मधु और दूध के साथ सुखदायक हों | दे शुना-
सीर ! हमें सब ऐंद्वर्य प्राप्त हो |
एन मन्त्रों से हल और लेती के सभी उपकरणों के संक्रेत मिलते हैं। हल का
प्रथम आविष्कार भारत की उर्वरा भूमि में हुआ । इल के खींचने के लिए. बैलों का
प्रयोग करना, इस देश ने प्रथम बार प्रचल्ति किया | हल में छोदहे कै फाल लगाना
और उनकी सहायता से क्यारियाँ बनाना, यहीं आरम्भ हुआ । हल के बैलों को
हाँकने के लिए अश्ञा जर्थात् कोढड़े या चाबुकों की यहां व्यवस्था हुईं | ह्लों में बेल
बरत्रा द्वारा बॉँघे जाने छगे |
अष्टा का उल्हेख ऋग्वेद में अन्यत्र भी हुआ है ।” एक मन्त्र में गौओं के लिए
(याते अष्टा गोंओपशा55४णे पशुसाधनी) और दूसरे में पशुमात्र के लिए | वरत्रा का
उपयोग कुएँ से पानी खींचने में भी होता था, और बाछटियाँ इससे बॉधी जाती थीं-
» निगहावान कृणोतन सं वगर्चा द्यातन।
सिश्ञामहा अवतमुद्रिणं व्य सुपेकमनुपक्षितम् ॥ ऋण १० 1१०१॥५
आहाव उस बालछटी या ट्य को कहते है, जिसमें कुएं के निकट पशुओं को पानी
पिछाया जाता है| इसमें वरत्रा अर्थात् उठाने या खींचने की रस्सियाँ दृदता से बाँधी
जाती हैँ | इस बरत्रा से आहाब को बॉधकर अवत अथांत् कुएँ से पानी खॉचकर
निकाला जाता है|”
इस मन्त्र कै पहले ही एक दूसरे मन्त्र में हल्ू में जोतने के लिए बैलों के कन्धों
पर रक्खे हुए जुए ( युग, ४०1८८ ) का हुछ्लेख है| अंग्रेजी का ॥०1:८ शब्द वैदिक
(४०) कऋ० १०1११७। ७ । कृपन्नित फाछ आहदितं क्ृणोति यनज्नध्यानमप बृछक्ते
चरित्र १ |
(४१) ऋ ० ६॥५३॥९; ६[५८।२
(४२) ऋ० १०॥१०१।५ | आहांव ऋ० १|३४।८-त्रय आहावाः (ये आहाव घट
के समान हैं ) ।
(४३) ऋर० 1०॥१०१|४
User Reviews
No Reviews | Add Yours...