रिग वेद संहिता | Rig Veda Samhita (vedik Jivan )

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Rig Veda Samhita (vedik Jivan ) by पंडित शंकर शास्त्री - Pandit Shankar Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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- ( १६२३ ) कक मं०१ सूइश्मं०७ संस्कतार्थः । हे वज़िन्निद्र | सत्व॑ खलु पुरुकृत्साय युद्ध कूर्वन्‌ सप्त पुराणि विद्ारितवान्‌ यः (त्वम) लुदासे बहिरि- वाउनायासेन (शत्रून्‌) छेदितवान्‌ हे राजन्‌ !(त्वम) प्रवे दारिद्रयाद्‌ धन कृतवान्‌ ॥ ७ ॥ सावाथ । हे वज्नञ धारी इन्द्र | सच मुच पुरुकुत्स के लिये युद्ध करते हुए उस आपने सात गढों को छिन्‍्नाभन्‍न किया और जिस आपने सुदास के लिये कुशा की न्याईं (शन्नुओं को) काट डाला, हे राजा आपने पूरु के लिये दरिद्रता से धन को किया 1७1 (१)एरुकृत्स, सुदाघ और पूरु ये प्राचीनआय्यराजा हैँ जिनके अनाय॑ दाजुओं को इन्द्र ने नाइ किया था ॥ (२) द्रिद्वता से घनर को किया, अर्थात्त द्रिद्ता मिटा कर घती बनाया ॥ इन्द्रोदेबता त्रिष्टुप्छन्द:1११११॥११११ | | ०-७. त्वंत्यांनइन्द्रदेवचित्रा सिष॒मापी- 1 | 1 नपीप्रयु:परिज्मनू ।. यवाशुरप्रत्य




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