शुक्ल जैन महाभारत [खण्ड 1] | Shukla Jain Mahabharat [khand -1]
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
23 MB
कुल पष्ठ :
616
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about श्री बालमुकुंद जैन सर्राफ - Shri Balmukund Jain Sarraf
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रकाशकीय निवेदन
_-+ ०४ +ै- ०४--
साहित्य भी जीवन-निर्माण के साधनों मे से एक मुख्य साधन
है | यह वर्तमान भूत और भविष्यत् त्रिकाल का द्र॒ष्टा तथा परि-
चायक है । इसके अ्रभाव मे वेयक्तिक, सामाजिक तथा धामिक
नियमों का प्रचार तथा प्रसार नहीं हो सकता । क्योकि मानव-
सिद्धान्तो तथा मनोगत विचारो को दूसरे तक पहुचाने के दो ही
साधन है-वकक््तृत्व श्रौर लेखन । वक्तृत्व से प्रचार सीमित तथा
अस्थायी रहता है । श्रत उन्ही विचारो को जब श्रालेखित कर दिया
जाता है तो जन जन तक पहुच जाते है ।
फिर वर्तमान युगीन मानव की श्राशाये तथा आवश्यकताये
इतनी बढ चुकी है कि उसके भरसक प्रयत्न करने पर भी पूर्ण नही
हो पाती जिस से वह सदा शअ्रशान्त बना रहता है। भरत अपने
अशान्त एवं निराश मन को शान््त करने के लिए नाना प्रकार के
मनोरजक कार्यो का आयोजन करता है। वे मतोरजक कार्य उसके
मन को स्थायी शान्ति दिला सके या न दिला सके किन्तु साहित्य
तो उसके निराश एवं अशान्त मन को आशा तथा सतोष के स्थायी
भाव प्रदान करता है। अधिक तो वया मानव से महामानव बन जाने
को अन्तर मे प्रेरणा तथा स्फूर्ति का जागरण करता है। क्योकि
साहित्य जीवन का जीता जागता प्रतीक है ।
मन्त्री श्री जी का प्रस्तुत ग्रन्थ भी एक जीवनोपयोगी साधन
बनेगा यह एक ऐतिहासिक ग्रन्थ है जिसमे श्राज से लगभग चौरासी
हजार वर्ष पूर्व के भारत की स्थिति, कार्यकलाप तथा जीवन के प्रति
दृढ विश्वास श्रादि का दिग्द्शन कराता है। साथ-साथ उस समय के
User Reviews
No Reviews | Add Yours...