श्री सूत्रकृतांग सूत्रम [भाग 4] | Shri Sutrakritang Sutram [Bhag 4]
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
45 MB
कुल पष्ठ :
827
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)समयाथेयोघिती टीका दि. भ्रु. अ. १ पुण्डरीकनामाध्ययनम् १५
र>्खआआ यश्खलेल्खचस्स्स्सस्ल््््ल्ल्््््ल््ल्््स्ले्््््््््कििफफडमससस्मिसममससिस्कक>न्ननज
रीये! अहमेतत् पद्मयरपुण्डरीकम् 'उन्निकि वस्सामि' उन्निक्षेप्स्यामि, इति प्रतिद्व-
याउहमिहा55्गतो5स्मि । 'त्ति कट्ड इति कृत्वा हत्थे प्रतिज्ञां कृत्वाउहमन्राउड्ग-
तोषस्मि । कथमेतत् पत्र सपड्मलाज्जलाशयादुद्धरणीय तत्सवे विधिविधानमह
जानामि, अतो मयेतत्काये कायम 'इह बच्चा से पुरिसे अमिक्झमे ते पुक्खरिणि?
इत्युक्तवा स॒ पुरुषोडभिक्रामति ता पृष्करिणीम, जाते नाव च ण॑ अभिक्कमेड
यावद् यावच्च सो5भिक्रामति ताब॑ ताव॑ च ण॑ महंते उदए महते सेए” तावत
तावच्च स! महदृदक्क सहान् सेयः आयच्छति द्वितीयः पुरुष आत्मछाधां कुर्षन्
प्रतिक्षिपंश्न॒ पुरुषान्तरं यात्रत् पुष्फरिण्पां प्ररिष्ट एगेत्तम कमलमानेतुम् , ताव-
न्महडज्जलूं मह।न्त सेये समवाष्य 'पहीणे तीरं अपत्ते पउमबरपोंडरीयं! प्रहीणरती-
रात् अप्राप्तः पद्मवरपुण्डरीकय , दक्षिणतीराद अष्टो न च प्राप पद्मररपुण्डरीकम।
हस प्रकार चह अपने आपमें पृद्धि के भतिशप को और फमल फो
लाने की घोग्पता को प्रकट करता हुआ छुस्करा फर आउम्पर के साथ
पराक्रप फरता है। चह प्रतिज्ञा करता है कि में इस कमल फो उखाड़
कर ले आऊ गां। में ऐसी प्रतिज्ञा करके ही यहां आया ह'। इस जल
एवं कीचड से व्याप्त जलादाथ से कमल को किस प्रकार निकाल लाना
चोहिए, यह सब विधि चिघोन में जानता हूं । अतएव यह काय सुझे
करना चाहिए। ऐसा कह कर वह पुरुष उल्र पुष्करिणी में प्रवेश करता
है। और ज्यों-ज्यों दह उसमें आगे बढता है त्यो त्थों अधिकाधिक
जल ओर फोचड़ फे सानने आता है। वह भी तीर छो त्याग देता है
और उस उक्षम कमल तक पहच नहीं पाता है। न इधर का रहता है,
न उधर क्वा रहता है। अर्थात् न तो दक्षिणी शिनारे पर स्थित रहता हैं
जा अभाणे ते पात पेतानाभां लुद्धिता विशेषपणाने तथा धभणने
ल्षपबानी येज्यतवाने प्रथट ४रते थये। रुव्ीने जाउभ्णर पूर्वाड पराद्रभ 5२-
बाने तेयार थये।. ते भतिशा 3रे छे बे-हु' जा भणने उजेदी व
रापीश, हु' खेपी अतिया इसीने « जडियां समावेश छ जा पाणी गने
घाध्वथी व्यास सत्ाशप-परावर्भावी उमणने 38 सैते गडार 5छाउव' मेहओ
ते सघणी पिधि-पिघान हु. व्ूणा छा ते छ जा आयो भार ध्स्चु'
नेएले जा अ्भाएे 3२ऐीने ते शु३प ते वातभा प्रचेशे छे जने व्रम धछोभ
ते तेभा खाभ्ण पचे छे, तेम पेम पधारेभा पधारे पफ्दौ नमने डअाध्व शामे
गापे ऐ, थे पु श्दिसने ६ ही हे छे, सभे ते इचतभ धमण सभी पढे।यी
शाध्ते। नधी, न रडिने। स्तो | न त्यंगा ज्यात् ते नते। घछषिछुना धिनाईे
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