उत्तराध्ययन सूत्र एक परिशीलन | Utraadhan-sutr Ek Pareshilan

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Utraadhan-sutr Ek Pareshilan by सिद्धेश्वर - Siddheshvar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रात्ताविक ' जन आगमो में उत्तराध्ययन-सूत्र [ ५ आगम [ | | अग अगरबाह्य (१२) | हक कान ला मद मा 1 हम उपाड़' मूलसूत्र छेदसूत्रः अविभाजित (नदी प्रकीर्णक३ (१२) (४) (६) ओर अनुयोग) , (१०) (२) इस तरह सामान्यतया ४६ आमम ग्रन्थ माने जाते हैं उनमे बारहवे अग दृष्टिवाद का उच्छेद मात लेने पर ४५ आगम- ग्रन्‍्थो की परम्परा है ।* १ बारह उपाए ये हैं-ओऔपपातिक, राजप्रश्तीय, जीवाशिगम, प्रज्ञापना, सूरयप्रज्ञप्ति, जम्बूद्वीपप्रश्प्ति, चन्द्रप्रशप्ति, कल्विका, फल्पावतप्तिका, पुष्पिका, पुष्पचला और वृष्णिदशा । अन्तिम पाच को निरयावलिया भी कहते हैं। इनका अगो के साथ वस्तुत कोई सम्बन्ध नही है फिर भी इन्हे रूढि से उपाग कहा जाता है। सिर्फे पाँच निरयावलियो की उपाग सज्ञा मिलती है । - देखिए-जै ० सा० बृ० इ०, भाग २, पु० ७-८ २ छ छेदसूत्र ये है--निशीथ, महानिशीय, व्यवहार, आचारदशा या दशाश्रुतस्कन्ध, बृहत्कल्प तथा पच्रकल्प या जीतकह्प । इनसे साधु- घर्म का पालन करते समय लगे हुए दोषो की प्रायश्चित्त विधि का वर्णन है। अत ये छेदसूत्र कहलाते हैं । ३ यद्यपि नदी (सूत्र ४३ ) में कालिकश्रुत को तथा उत्तराष्ययन मे (देखिए-पृ० ३, पा० ठि० २) अगातिरिक्त को प्रकीर्णक कहा है परस्तु वर्तमान में इनकी सख्या १० नियत है--चतु शरण, आतुरप्रत्याख्यान, मक्तपरिज्ञा, सस्तारक, तड्लवंचारिक, चन्द्रवेध्यक, देवेन्द्रस्तव, पणिचिद्या, महाप्रत्यास्यात तथा वीरस्तव। इन नामों में कुछ सम्प्रदायगत अन्तर भी हैं । ४ ब्वेताम्बर स्थानकवासी इनमे से ३२ तथा कुछ मूर्तिपूजक श्वेताम्वर ८४ आगम मानते हैं । ““देखिए-प्रा० सा० इ०, पृु० ३३-३४ फुटनोट ।




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