सूक्ति - संग्रह | Sukti Sangrah
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
182
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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जीवदया जिणधम्मो, सावयजम्भो गुरूण पयभत्ती ।
एश्र रयणचउबक, पुण्णेहि बिणा न पाचन्ति ॥४॥-
जीवदया जिनधर्म , श्रावकजन्म गुरूणा पदभक्ति
एतद् रत्नचतुप्क, पुण्येविना न प्राप्नुबन्ति ॥५॥ ,
झापय - न ४ गा जी
जीवदया जिनधर्म श्रावकजन्म, ग्रुरगाम्,। पदभक्ति,
एतत् रत्न चतुप्क (जना ) पुण्य, विना न प्राप्नुवैन्ति +
सक्षिप्त प्याए्या ५ '
जीवेपु, प्रासििपु दया कृपा, जिनस्य धर्म श्रांवकस्य
जैन धर्म पालव स्य जन्म, गुरुणाम् पचरमहात्रतपालका-
चार्यादि पूज्य पुम्पाणाम् पादयो चरणयो भक्ति
एतत् (उद) रत्नानाम् चतुप्कम् सत्नचतुप्ट (जना-
नरा ) पुण्य. सत् कर्मभि बिना न प्राप्नुबन्ति लभन्ते।
झर्प -+
जीबो पर दया, जैनवर्म, क्षागक बुल मे जन्म, 'गरजनों है
के चरणों मे भक्ति ये चारो रत्न मनुष्य पृष्यो कक !
बिना प्राप्न नहीं कर सबते हैं ९
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