ये नये हुक्मरान | Ye Naye Hukmaran

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आनंद स्वरुप वर्मा - Aanand Swaroop Verma

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जनार्दन ठाकुर - Janardan Thakur

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रत छोड़ी -आदौलन के चमचमाते सितारों मे से एवं तथा युवरों कै आदश ज० पी ० का सत्ता पर कभी अधिकार नहीं रहा। लेकिन अपने जीवन में वह कभी सत्ता के खेल से बाहर भी नही रहे हालाकि उनका एक दूसरी तरह की राजनीति में विश्वास रहा । काफी पहुले 1963 में उ होने एक अमेरिकी प्रकार से कहा भी था कि पार्टी और राजनीति से रिटायर होने वी घोषणा वे वावजूद बहु सर से पाव तक राजनीति से सराबीर है और इसके समूचे स्वरूप को बदलने की कोशिश म लगे हैं । यह बहुत स्वाभाविक था कि जे० पी० धीरे धीरे जवाहरनाल नेहरू से दूर होते गये जो एक ऐसी घटिया राजनीति में सर से पाँव तक डूबे थे जिसमे जे० पी० को जाहिरा तौर पर नफरत थी । 1948 में जवाहरलाल नेहरू ने उ हू भारत का भावी प्रधानमत्री कहा था पर 1955 तक जब पी० को नेहरू एक ददानेजान समझते लगे थे । इसके अलावा उस समय तक नेहरु जपने उत्तराधिकारी के रूप में दूसरे लोगों के बारे में सोचने लगे थे--उस लोगा के चारे में जो उनवे उयादा सज़दीक थे। उदोने जे० पी० पर आरोप डा किया कि वह राजनीति और शूदान के जभो वे पीछे सवा छिपी सेन रहे है। दोना नेताओं के बीच कभी प्यार और कभी नफरत वाला विचिंश्र सबध था जो बभ-से-कम एवं हृद तब राजनीति की सुख्य धारा से जे० पी० के अलगाव यर सी रोशनी डालता ही हैं आज़ादी बाद वे वर्षो में जे० पी० ने जो कुछ कहा और किया उस पर भी प्रकाश डाजता है। इस नेना के व्यक्तित्व वो पूरी तरह समभने के निए--जिसको आज कुछ नाग भारत मा दूसरा गाधी कहकर जयजयकार करते है--हम आजादी के आदोलन के दिनो पर गौर करना पढड़ेंगा जब जे०पी ० उम्र युवा नानिवारी थे और जवाहरलाल नेहरू के वाद दूसरे स्थान पर समझे जाते थे । नहर-परिवार ये सदभ से अलग करने जे०्पी० वो समकना मुश्किल है और यठ सच्चाई भी अनदेखी नहीं की जा सती हिं जाज़ादी के आदोलन के काफी सुरू के वर्षो म ही नेहरू महात्मा गाधी के काफी चहेन बन गये थे । जे० पी० ने राजनीतिक जीवन के अधिकाश भाग की रचना में इतिहास की इस सच्चाई की महत्वपूर्ण भूमित्रा है ) ज़े० पी० ने महात्मा गाधी के आह्वाउ पर तीसरे दशव के शुरू बे वर्षो मे बालिज छोड दिया था । जवाहरनाल उनसे तेरह साल बड़े हो नहीं थ. एक अति समद्ध घराने में पैदा भी इुए थे जिसका उह लाभ मिलता रहा । उनवी देखभाल के लिए एक परी लिखी नंप्रेस जाया थी और उनकी शिक्षा हैरो तगा कंम्ब्रिज में हुई थी । वह भच्छी अंप्रेज़ी निख रोल सकते थे और थुरू से ही उह नेनत्व की अगली कतार में डान दिया गया था। जयप्राय भी काफी आक्पक भर खबसूरत थे--इतने सूयसूरत कि आज भी पिहार के बुजुग लोग उनके आंपड ध्यक्तित्य वी चर्चा बरने है । लेनिन वह सभ्यता की होड में पिछड़े हुए विहार-यू० पी०- सीमा वे एवं गाँव सितावदियारा वे एवं निम्न सध्यवर्माव परिवार में पैदा हुए थे । फिर भी जे० पी० इन विपम स्थितियां से जवडे जाने वाले नहीं थे । उड्ोन विभिन सोतो से बुछ पैसा इवटठा दिया अपनी जवान परनी वो बस्तूरव। मे जिम्मे छाडा और अपेरिवा ये लिए रवाना हो गये जहा उतहोंने आठ कप तवा भोपण सघप किया और शिक्षा प्राप्त की । उतयी पत्नी प्रभावती महात्मा गाघी मे जनदस्त अजुमायी डॉ० राजे दप्रसाद वे एक वहूत नज़दोवी मित्र बी पुत्री थी 1 नेदिन चमवतती आँखों वादे पथिक जे० पी० उमर सापमवादी बन थे थे पृष्ठभूमि गंदजोड का पार. 15




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