नई ग़ज़ल | Nai Gazal
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
780 KB
कुल पष्ठ :
90
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)आ्राबिद भ्रदीब
पहयोें ये सोचता हूँ, किनारे खड़ा हुवा
होता जो मैं पवन तो समुन्दर को लांघता
ये इक अलग सवाल है मिलता जवाब क्या
कोई खमोश भील में पत्थर तो फ़ेंकता
कड़वी कर्सली बात्त भी सुनता रहा मगर
साइल' था श्रपना हाथ पसारे खड़ा रहा
धरती हिली तो लोग घरों से मिकल पड़े
जैसे उन्हें घरों से कोई वास्ता न था
तख्ती पे रेगज्ञारः के क़दमों के शब्द थे
तहरीर* साफ़-साफ थी कोई न पढ़ सका
इक लम्बे चौड़े हॉल की मेजें उलट पड़ी
कुर्सी ने फिर सुता दिया यकतरफ़ा फ़ैसला
, भिल्लुक 2. रेगिस्तान की तख्ठी 3. लिखावढ
नई ग़द़छ / २१
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