श्री मद्भगवत गीता | Shri Madbhagwat Geeta
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
101
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
He was great saint.He was co-founder Of GEETAPRESS Gorakhpur. Once He got Darshan of a Himalayan saint, who directed him to re stablish vadik sahitya. From that day he worked towards stablish Geeta press.
He was real vaishnava ,Great devoty of Sri Radha Krishna.
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(:२३ )
लीक ह. जविपयर्दीन + उन
१९ अनंसक्तभावसे कतेब्य कर्म करनेके लिये. आज्ञा और उससे
भगवत्-प्राप्ति
२० जनकादिके इश्ान्तसे कम करनेके लिये प्रेरणा ।
२१ श्रेष्ट पुरुफके आचरण ग्रमाणखरूप माने जानेका कथन |
२२-२४ भगवानके लिये कोई कर्तव्य न होनेपर भी लोकसंग्रहार्थ
कर्म करनेक्ी आवश्यकताका निरूपण ।
२५ लोकसंग्रहार्थ अनासक्तभावसे कर्म करनेके लिये प्रेरणा |
२६ सक्रामी पुरुषोंकी बुद्धिमें श्रम उत्पन्न करनेका निषेध |
२७ मूद़ पुरुषका लक्षण ।
२८ तच्चेत्ता पुरुषका लक्षण ।
२९ अज्ञानियोंकों क्मोंसे चलायमान करनेका निषेध ।
३० संपूर्ण कर्म भगवानमें अर्पंण-करके युद्ध करनेकी आज्ञा ।
३१ भगवत-सिद्धान्तके अनुकूल ब्तनेसे मुक्ति ।
३९२ भगवत्-सिद्धान्तके अनुकूल न बतनेसे अधोगति |
३३ खाभाविक कर्मोकी चेशमें अक्रतिकी प्रबलता |
३४ राग-द्ेपके बशमें होनेक्ा निषेध ।
३५ खधमंपालनसे कल्याण और परधमसे हानि ।
३६ बलात्कारसे पाप करानेमें कौन हेतु है इस वरिपयम अजुनका
ग्रश्न।
३७ बलात्कारसे पाप करानेमें कामरूप हेतुका कथन |
3८-३९ कामरूप बेरीसे ज्ञान ढका हुआ है | इस विपयका द््टन्तों-
सहित कथन ।
४० कामके वासस्थानोंका कथन ।
४१ इन्द्रियोंको बशमें करके कामको मारनेकी आश्षा ।
४२ इन्द्रिय, मन ओर बुद्धिसे भी आत्माकी अति श्रे्टका कथन ।
३३ चुद्धिसे परे आत्माकों जानकर और मनको चच्चमें करके कामको
“मारनेकी आज्ञा । 7
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