श्री मद्भगवत गीता | Shri Madbhagwat Geeta

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Shri Madbhagwat Geeta by हनुमान प्रसाद पोद्दार - Hanuman Prasad Poddar

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He was great saint.He was co-founder Of GEETAPRESS Gorakhpur. Once He got Darshan of a Himalayan saint, who directed him to re stablish vadik sahitya. From that day he worked towards stablish Geeta press.
He was real vaishnava ,Great devoty of Sri Radha Krishna.

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(:२३ ) लीक ह. जविपयर्दीन + उन १९ अनंसक्तभावसे कतेब्य कर्म करनेके लिये. आज्ञा और उससे भगवत्-प्राप्ति २० जनकादिके इश्ान्तसे कम करनेके लिये प्रेरणा । २१ श्रेष्ट पुरुफके आचरण ग्रमाणखरूप माने जानेका कथन | २२-२४ भगवानके लिये कोई कर्तव्य न होनेपर भी लोकसंग्रहार्थ कर्म करनेक्ी आवश्यकताका निरूपण । २५ लोकसंग्रहार्थ अनासक्तभावसे कर्म करनेके लिये प्रेरणा | २६ सक्रामी पुरुषोंकी बुद्धिमें श्रम उत्पन्न करनेका निषेध | २७ मूद़ पुरुषका लक्षण । २८ तच्चेत्ता पुरुषका लक्षण । २९ अज्ञानियोंकों क्मोंसे चलायमान करनेका निषेध । ३० संपूर्ण कर्म भगवानमें अर्पंण-करके युद्ध करनेकी आज्ञा । ३१ भगवत-सिद्धान्तके अनुकूल ब्तनेसे मुक्ति । ३९२ भगवत्-सिद्धान्तके अनुकूल न बतनेसे अधोगति | ३३ खाभाविक कर्मोकी चेशमें अक्रतिकी प्रबलता | ३४ राग-द्ेपके बशमें होनेक्ा निषेध । ३५ खधमंपालनसे कल्याण और परधमसे हानि । ३६ बलात्कारसे पाप करानेमें कौन हेतु है इस वरिपयम अजुनका ग्रश्न। ३७ बलात्कारसे पाप करानेमें कामरूप हेतुका कथन | 3८-३९ कामरूप बेरीसे ज्ञान ढका हुआ है | इस विपयका द््टन्तों- सहित कथन । ४० कामके वासस्थानोंका कथन । ४१ इन्द्रियोंको बशमें करके कामको मारनेकी आश्षा । ४२ इन्द्रिय, मन ओर बुद्धिसे भी आत्माकी अति श्रे्टका कथन । ३३ चुद्धिसे परे आत्माकों जानकर और मनको चच्चमें करके कामको “मारनेकी आज्ञा । 7 3




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