संस्कृत पद्य संग्रह भाग 1 | Sanskrit Padya Sangrah Bhag 1

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Sanskrit Padya Sangrah Bhag 1 by वासुदेव द्विवेदी - Vasudev Dwivedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कततज्ता प्रकार इस पुस्तक के प्रकाशन में नैनीजोर, जिल्ला आरा के निवासी तथा वर्तमान में वसतपुर थाना, जिल्ला सारन के प्रधान, मूमिदारकुलभूपण--- श्रीयुत इन्द्रासन पांडे, बी० ए० महोदय ने ३७५४) सहायता प्रदान को है। आय प्रवानतया अंग्रेजी शिक्षित होने तथा पुलिस-वेभाग जैसी साहित्य ओर संस्कृति की चर्चा से दूर रहने वाली संस्था में काम करने पर भी संस्कृत-प्रचार के प्रशल पत्नपाती, संस्कृत-साहित्य के महान्‌ अनु रागी और अध्येता तथा भारतीय संस्कृति के विचार एवं व्यवहार उभयथा विशेष समथक तथा उपाप्तक व्यक्ति हैं! संस्कृत-प्रचार की सर्वत्र चर्चा, संस्कृत-साहित्य का यथासम्मव अनुशीलन तथा संध्कृत के विद्वानों से अनुराग एवं उनकी यथाशक्ति सेवा यह!आपके जीवन के मुख्य कतव्य हैं। आपने अपने निजी अध्ययन के लिये वेद, पुराण, उपनिषद्‌, रामायण, महाभारत, योगवाशिष्ठ, दर्शन, श्रर्थ- शास्र, नीतिशासत्र, काव्य, व्याकरण आदि एवं अन्य अनेक संस्कृत-साहित्य के विशिष्ट ग्रन्थों का एक सुन्दर संग्रह कर रखा है और सवंदा नूतन प्रकाशित होने वाली पुस्तकों के भी संग्रह के लिये सचेष्ट रहते हैं। आपको अभ्रातृतधू साहित्या- चार्या हैं। आपके श्रत्यन्त नन्हे बालक श्री इन्द्रजित्‌ को अपनी वुतली बोली में ही न जाने संस्कृत के कितने ही सुन्दर-सुन्दर श्लोक शुद्ध-शुद्ध एवं स्वर के साथ _ कण्टस्थ हैं| गम्यताम्‌ , आगम्यताम्‌ , दीयताम्‌ , गह्मयताम्‌ आदि व्यावहारिक पद आपके बाल्क-झत्य >ंगरी को भी याद रहते हैं। ओर आपके इस दैनिक संस्कृत की चर्चा से आपके मुजन सईस श्री खेरत मियाँ भी संस्कृत और संस्कृतज्ञों के प्रेमी हो गये हैं । यह सब थआ्रापके संस्कृतानु राग के ज्वल्न्त उदाहरण हैं। इसके अतिरिक्त आपकी दो और विशेषतायें हैं। पहली यह कि संस्कृत- साहित्य की शिक्षाश्रों के अनुसार आप किसी व्यक्ति के लिये केबल संस्कृत का




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