कल्याण नारी अंक | Kalyan Nari Ank

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Kalyan Nari Ank by मुनि कान्तिसागर - Muni Kantisagar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हुर्गति-नाशिनि हुर्गा जय जय, काल-विनाशिनि काली जय जब । उम्ता रसा ब्रह्माणी जय जब, राधा सीता रुक्रिसिणि जय जय ॥| साम्व सदाशिव, सास्य सदाशिव, साख्य सदाशिव, जब शेकर | हर हर शंकर दुखहर सुझ्कर अव-तम-हर हर हर शंकर ॥ हरे राम हरे राम शाम राम हरे हरे। हरे कृष्ण हरे छृष्ण कृष्ण कृप्ण हरे हरे ॥ जय-जय दुर्गा, जय मा तारा | जब यणेश, जब शुम-आमारा ॥ जयति शिवा-शिव्‌ जानकि-राम । गोरी-शंकर सीता-राम ॥ जय रघुनन्दन जय सिया-राम । वज-गोपी-प्रिय राषध्याम ॥| रुपति राघव राजा राम | पतितपावन सीता-राम ॥ घु खपृछठ 0 कै, | +$ है +७ हिदि क को के [जिन्रप हिंदू-संस्क्ृतिका खरूप ध्यान धरे प्रणव-खरूप ज्योति अक्षका जो 'खस्तिक! सुखद शिवरूप वह पाता है | उर बीच सत्य आदि पोड्श कमर-दल होते है प्रबुद्ध, चिच शुद्ध चन जाता है ॥ भक्ति, 'प्रे', 'समतए विराजती तभी हैं बह“ँ, सब-आत्मद्शन! अनाछत सुह्ता है । सगवदू-धाम' मे घिरास हैं परण गति हिंद-संस्कृतिक्ता भव्य रूप यह खाता है।॥ ३५... «7०४०० > ++ 7३७ ०००० * ध+आ ९ न सकरों ००६० कक रक/.+17+(.६४.७१:६: +कडू' [82२० हुक4: धो '+पु>++क २९० ३१४५६८४३२५ +क हु ७०+२७+ 1 राम डा 1 चक्र + फिनपीलकिण किक ाइू कलर त बरी *क ४ और कक रत तप कल इक लकतक+इतलकक+-+३+ कल इक तक सललचपू** 73३४४०+६४६३०५६७९७३/७+-३७« सर “आफ>२०जर७+ौ*ूक>७-+३ू७ रजत हू मं जय । सत्‌-चित्‌-आहनँद्‌ यूमा जय जय |[[ इस बक्ढछा ' 12 सूल्च ज््मू शंद ५ 'केमनाटक.. आनमऊ ट हा कर्यिक यूल् | जय पावक रवि चन्द्र जयति ल्द आरतमे जा) | जय ५ हे | / जय जय एश्वसूप हा जे न खिलार त्मत्‌ जय जय विदेशस ध्‌ ०) [ ज़््यू दा ई्‌ ८६६०४ २३१ ज््यू | द्भ्यू हर आखलात्मनू जज जज | | रे बिल्य ३॥) २ मिल्स । स्य॑ विराट 2 जय जगतते मे । उतरे अर । पदशम्र ५) , (५निल्डि)2 / जय छेराट जय जगलते। गोसपाते जय रस्ापते॥]। (१३३ शिलिड्वत: पिला न सम कद यन नर 3-3335 तनमन ++न+ ८ लक न «न ने. ८स«न मल कनथ++<न 5० +०प 1०० जरकक3७/ कलम $ रु रेड श 7 ढ .उ्पादक--हलुसान्यसाद पोह्यर, चिस्मनत्मछ गोखामी, एस० ००, शास्री / प्रकाशक: घप्रनंध्धासदासस जल २5 ३ पर इंद्रकसकाशक--धनस्यामदास जालान, गीताप्रेस, गोरखपुर . .- . कह ० मे




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