विचार - दर्शन | Vichar Darshan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
21.52 MB
कुल पष्ठ :
810
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)की एक ९ अति भी सिल गई तो उन सबके शीघ्र ही
प्रकाशित करने का प्रयल्न किया जायगा।
भरतियाजी का स्वास्थ्य बहुत अच्छा था । वह बहुत
कस वीमार हुमा करते थे । १५;१५ घंटे लगातार लिख
पढ सकते थे । झाप बुत दिनों तक योग सिद्धियों का
भी अभ्यास करते रहे थे जिस के कारण थझाप के दिल
'और दिमाग अन्तिम समय तक पूर्ण स्त्रास्थ्य रहे । यदि ३
दिन प्रथम से सल्निपात के झाक्रमण के कारण उन की
'ावाज़ बन्द न दो जाती तो वद्द छन्तिस स्वांस तक
छावश्यदी वोलते रहते ।
गतव्ष भर्रतियाजीने वस्बई, दुददली, दरीद्ार, मथुरा,
प्रयाग, गया, आदि की यात्रा की थी । इसी यात्रा में
आप का स्वास्थ्य विगड़ गया । आप को संग्रद्खी के भयं-
कर रोगने झादवाया । इन्दौर के प्रसिद्ध बेद्यों और
डाक्टरों की चकित्सा दवड़े ध्यान के साथ हुई । आप के २,४
कृपा पात्र मित्रोंने ञाप की यथाशक्ति सेवा कर के छपना
कत्तैव्य सी पालन किया किन्तु काल बली से किसी की
न वसयाई । १९ फ़रवरी सन् १५ ई० को इन्दौर
में ६१ वर्षे की झायू में मध्य भारत के इस प्रतिभाशाली
साहिय्यसेवी का स्वगवास हो गया । सत्यु से कई दिन पू्वे _
जब कि आप की दशा एक दिन वहुत विगड़ गई और छाप
जीवन से निराश दो गये तो झापने निश्न कविता लिखाईः-
डे -रु७-
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