विचार - दर्शन | Vichar Darshan

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Vichar Darshan  by श्री शिवचंद्र जी - Shri Shivchandra Ji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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की एक ९ अति भी सिल गई तो उन सबके शीघ्र ही प्रकाशित करने का प्रयल्न किया जायगा। भरतियाजी का स्वास्थ्य बहुत अच्छा था । वह बहुत कस वीमार हुमा करते थे । १५;१५ घंटे लगातार लिख पढ सकते थे । झाप बुत दिनों तक योग सिद्धियों का भी अभ्यास करते रहे थे जिस के कारण थझाप के दिल 'और दिमाग अन्तिम समय तक पूर्ण स्त्रास्थ्य रहे । यदि ३ दिन प्रथम से सल्निपात के झाक्रमण के कारण उन की 'ावाज़ बन्द न दो जाती तो वद्द छन्तिस स्वांस तक छावश्यदी वोलते रहते । गतव्ष भर्रतियाजीने वस्बई, दुददली, दरीद्ार, मथुरा, प्रयाग, गया, आदि की यात्रा की थी । इसी यात्रा में आप का स्वास्थ्य विगड़ गया । आप को संग्रद्खी के भयं- कर रोगने झादवाया । इन्दौर के प्रसिद्ध बेद्यों और डाक्टरों की चकित्सा दवड़े ध्यान के साथ हुई । आप के २,४ कृपा पात्र मित्रोंने ञाप की यथाशक्ति सेवा कर के छपना कत्तैव्य सी पालन किया किन्तु काल बली से किसी की न वसयाई । १९ फ़रवरी सन्‌ १५ ई० को इन्दौर में ६१ वर्षे की झायू में मध्य भारत के इस प्रतिभाशाली साहिय्यसेवी का स्वगवास हो गया । सत्यु से कई दिन पू्वे _ जब कि आप की दशा एक दिन वहुत विगड़ गई और छाप जीवन से निराश दो गये तो झापने निश्न कविता लिखाईः- डे -रु७-




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